Sunday 17 May 2020

विवाह कैसे करे ? How to get married ?

              विवाह ( Wedding )

               " विवाह कैसे करें "
जैसे श्री देवी दुर्गा जी ने अपने तीनों पुत्रों (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) का विवाह किया था।

भगवान ब्रह्म (काल) व माता भवानी (प्रकृति, अष्टंगी) ने तीनो पुत्रों का विवाह भगवान ब्रह्मा को सावित्रा, भगवान विष्णु को लक्ष्मी, भगवान शंकर को पार्वती पत्नी रूप में दी शब्द शक्ति से विवाह सम्पन किया।


श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाण है कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोई बाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे बजा था, न कोई नृत्य किया गया था।
श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्रा श्री ब्रह्मा जी से कहा कि हे ब्रह्मा ! यह सावित्रा नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दी जाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्रा श्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहा कि ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ।
तीनों अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व का विस्तार हुआ।

विवाह जो सुप्रथा से हुआ, वह आज तक सुखी जीवन जी रहे हैं। जैसे श्री ब्रह्मा जी तथा श्री विष्णु जी

 वर्तमान समय में सक्षम लोग महंगी शादियां कर रहे हैं। इससे यह एक परम्परा बन गई है। लोग शादियों में लाखो रुपये खर्च कर देते हैं यह सिर्फ अपने वर्चस्व के कारण देखा देखी कर रहे हैं, इसका प्रभाव निम्न वर्ग तथा मध्यम वर्ग पर पढ़ रहा है लोग उनको देखकर उनकी बराबरी करने की होड़ मच चुकी है।

हमारे समाज में फैली कुरुतियां जिसमें खर्चीली शादियों की होड़ रहती है,अनेक प्रकार के व्यसन शराब, डांस , गाना डीजे बजते हैं, नशा  ये सभी नुकसान करते हैं, इनसे समाज को ग़लत दिशा मिल रही है, अतः इस प्रकार के आयोजनों पर पाबंदी लगनी चाहिए। और इस तरह सादगी पूर्ण विवाह होने चाहिए जिससे कि दहेज प्रथा व भ्रूण हत्या पर लगाम लग सके।



👉 विवाह में प्रचलित वर्तमान परंपरा का त्याग:- 
विवाह में व्यर्थ का खर्चा त्यागना पड़ेगा। जैसे बेटी के विवाह में बड़ी बारात का आना, दहेज देना, यह व्यर्थ परंपरा है। जिस कारण से बेटी परिवार पर भार मानी जाने लगी है और उसको गर्भ में ही मारने का सिलसिला शुरू है जो माता-पिता के लिए महापाप का कारण बनता है। बेटी देवी का स्वरूप है। हमारी कुपरम्पराओं ने बेटी को दुश्मन बना दिया।

"अब सच होगा सबका सपना
दहेज मुक्त होगा भारत अपना"

👉 विवाह में ज्ञानहीन नाचते हैं
एक दिन समाचार पत्रा में पढ़ा कि दिल्ली का लड़का बम्बई विवाह के लिए कार में जा रहा था। उसके साथ दोनों बहनों के पति भी उसी कार में सवार थे। पहले दिन सब परिवार वाले (बहनें, माता-पिता, भाई-बटेऊ, चाचे-ताऊ) डी.जे. बजाकर नाच रहे थे। उधमस उतार रखा था। रास्ते में दुल्हे वाली गाड़ी बड़े ट्राले से टकराई। सर्व कार के यात्रा मारे गए। दुल्हा मरा, दोनों बहनें विधवा हुई। एक ही पुत्रा था, सर्वनाश हो गया। अब नाच लो डी.जे. बजाकर। परमात्मा की भक्ति करने से ऐसे संकट टल जाते हैं। इसलिए मेरे ( रामपाल दास के ) अनुयाईयों को सख्त आदेश है कि परमात्मा से डरकर कार्य करो।
सामान्य विधि से विवाह करो। इस गंदे लोक (काल के लोक) में एक पल का विश्वास नहीं कि कब बिजली गिर जाए।



प्रश्न :- बारात का प्रचलन कैसे हुआ? 
उत्तर :- राजा लोगों से प्रारम्भ हुआ। वे लड़के के विवाह में सेना लेकर जाते थे। रास्ते में राजा की सुरक्षा के लिए सेना जाती थी। जिसका सब खर्च लड़की वाला राजा वहन करता था।
सेठ-साहूकार दहेज में अधिक आभूषण तथा धन देते थे। वे गाँव के अन्य गरीब वर्ग के व्यक्तियों को दिहाड़ी पर ले जाते थे जो सुरक्षा के लिए होते थे। उनको पहले दिन लड़के वाला अपने घर पर मिठाई खिलाता था। लड़की वाले से प्रत्येक रक्षक को एक चाँदी का रूपया तथा एक पीतल का गिलास दिलाया जाता था। जो गरीब वर्ग अपनी गाड़ी तथा बैल ले जाते थे, उनको कुछ अधिक राशि का प्रलोभन दिया जाता था। पहले जंगल अधिक होते थे। यातायात के साधन नहीं थे। इस प्रकार यह एक परम्परा बन गई। उस समय अकाल गिरते थे। लोग निर्धन होते थे। कोई धनी अकेला मिल जाता था तो उसको लूटना आम बात थी। इस कारण से बारात रूपी सेना का प्रचलन हुआ। फिर यह एक लोग-दिखावा परम्परा बन गई जिसकी अब बिल्कुल आवश्यकता नहीं है।


प्रश्न :- भात तथा न्योंदा-न्यौंदार कैसे चला ?
उत्तर :- उसका मूल भी बारात का आना, दहेज का देना। बारात ले जाने के लिए लड़के वाले द्वारा मिठाई खिलाना। लड़की वाले के लिए भी उस बारात के लिए मिठाई तथा रूपया-गिलास देना आदि के कारण भात तथा न्यौता (न्योंदा) प्रथा प्रारम्भ हुई। न्योता समूह में गाँव तथा आसपास गवांड गाँव के प्रेमी-प्यारे व्यक्ति होते हैं। जिसके लड़के या लड़की का विवाह होता था तो अकेला परिवार खर्च वहन नहीं कर सकता था। उसके लिए लगभग सौ या अधिक सदस्य उस समूह में होते हैं। जिसके बच्चे का विवाह होता था तो सब सदस्य अपनी वित्तीय स्थिति अनुसार न्योता (धन राशि) विवाह वाले के पिता को देते हैं। कोई सौ रूपये, कोई दो सौ रूपये, कोई कम, कोई अधिक जो एक प्रकार का निःशुल्क उधार होता है। उस पर ब्याज नहीं देना पड़ता। सबका न्योते का धन लिखा जाता है। प्रत्येक सदस्य की बही (डायरी) में प्रत्येक विवाह पर दिया न्योता लिखा होता है। इस प्रकार विवाह वाले परिवार को धन की समस्या नहीं आती है।

भात :- भात भी इसी कड़ी में भरा जाता है। बहन के बच्चों के विवाह में कुछ कपड़े तथा नकद धन देना (भाई द्वारा की गई सहायता) भात कहा जाता है जो धन बहन को लौटाना नहीं होता। जिन बहनों के भाई नहीं हैं, वे उस दिन अति दुःखी होती हैं, एकान्त में बैठकर रोती हैं।

पीलिया :- लड़की को संतान उत्पन्न होने पर मायके वालों की ओर से जच्चा के लिए घर का देशी शुद्ध घी, कुछ गौन्द (घी+आटा भूनकर+गोला+अजवायन+काली मिर्च का मिश्रण गौन्द कहलाता है), नवजात बच्चे के छोटे-छोटे कपड़े (झूगले) भी मायके वाले तथा लड़की की ननंदों द्वारा लाए जाते हैं। यह परंपरा है जो कपड़े एक वर्ष के पश्चात् व्यर्थ हो जाते हैं। इस तरह की परंपरा को त्यागना है क्योंकि जीवन के सफर में व्यर्थ का भार है। आप अपनी बेटी की सहायता कर सकते हैं। जैसे गाय-भैंस लेनी है।
बेटी की वित्तीय स्थिति कमजोर है तो उसको नकद रूपये दे सकते हैं, परंतु विवाह के समय नहीं। बेटी का आपकी संपत्ति में से हक दे सकते हैं, अगर बेटी लेना चाहे तो। बेटी को चाहिए कि आवश्यकता पड़ने पर धन ले ले, परंतु फिर लौटा दे। परमात्मा पर विश्वास रखे। आपका सम्मान बना रहेगा।

समाधान :- इन सबका समाधान संत रामपाल जी महाराज बताते है कि विवाह को पाँचवें वेद के अनुसार विवाह रस्म करते हैं जिसमें कोई उपरोक्त परम्परा की आवश्यकता नहीं पड़ती। विवाह पर तथा अन्य अवसरों लड़की-लड़के वाले पक्ष का कोई खर्च नहीं कराना होता। केवल कन्यादान यानि बेटी दान करना है। लड़की अपने पहनने के लिए केवल चार ड्रैस ले जा सकती है। जूता तो पहन ही रखा है, बस। जिस घर में जाएगी, वह परिवार उस बेटी को अपने घर के सदस्य की तरह रखेगा। अपने घर की वित्तीय स्थिति के अनुसार अन्य सदस्य के समान सर्व आवश्यक वस्तुऐं उपलब्ध कराएगा।
बेटी अपने माता-पिता, भाई-भाभी पर कोई भार नहीं बनेगी। जब कभी अपने मायके आएगी तो कोई सूट तथा नकद नहीं लेगी। जिस कारण से भाभी-भाई को भी प्यारी लगेगी।
भाभी को ननंद इसीलिए खटकती है कि आ गई चार-पाँच हजार खर्च करवा कर जाएगी। परंतु हमारी बेटी सम्मान के साथ आएगी और सम्मान के साथ लौट जाएगी। अपने मायके वालों से कोई वस्तु नहीं लेगी। जिससे दोनों पक्षों का परस्पर अधिक प्रेम सदा बना रहेगा। भक्ति भी अच्छी होगी। इस प्रकार जीने की यथार्थ राह पर चलकर हम शीघ्र मंजिल पर (मोक्ष तक) पहुँचेंगे।

हमारे समाज में फैली कुरुतियां जिसमें खर्चीली शादियों की होड़ रहती है, अनेक प्रकार के व्यसन शराब, डांस , गाना डीजे बजते हैं, ये सभी नुकसान करते हैं, इनसे समाज को ग़लत दिशा मिल रही है, अतः इस प्रकार के आयोजनों पर पाबंदी लगनी चाहिए। और इस तरह सादगी पूर्ण विवाह होने चाहिए जिससे कि दहेज प्रथा व भ्रूण हत्या पर लगाम लग सके।
संत रामपाल जी महाराज ने जो समाज सुधारक का बीड़ा उठाया है वह पूरे भारत के कोने कोने में ही नहीं पूरे विश्व में जायेगा जो हर कन्या बेटी का उद्धार होगा और अपने आप जीवन मे दहेज मुक्त हो जाएगी ऐसे संत भारतवर्ष में एक ही है।
दहेज रूपी बुराई को समाज से दूर करना है ऐसे ही समाज सुधार होगा।



दहेज नाम ही कलंक है समाज में ।

बेटियों को बचाना है तो दहेज हटाना होगा हैं ।

मानव समाज में व्याप्त बुराईयों जैसे दहेज प्रथा व कन्या भ्रूण हत्या का समूल उन्मूलन केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के द्वारा बताये हुए तत्व ज्ञान से ही सम्भव है।

संत रामपाल जी महाराज के अनुयाई उनके आदेशानुसार दहेज रहित शादी करके सामाजिक कुरीतियां दूर करके भारत को फिर से सोने की चिड़िया बनाएंगे।

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Thursday 14 May 2020

सच्चा सत गुरु

                 सच्चा सत्  गुरु


तत्वदर्शी संतों ने बताया कि परमेश्वर कबीर जी ने गुरु को परमात्मा के समतुल्य मानकर भक्ति करने को कहा है।
 दूसरे शब्दों में कहे तो गुरु तो परमात्मा से भी बड़े हैं।
जैसे हेडपंप से जल मिलता है।

इसी प्रकार गुरु से परमात्मा मिलता है।
इस प्रकार गुरु तो परमात्मा से प्रथम सेवा करनेे योग्य है।
पूर्ण गुरु की पहचान बताई है...
👉 पूर्ण संत गुरु सर्व 
        वेद - शास्त्रों का ज्ञाता 
                                      होता है।
👉 दूसरे वह मन - कर्म - वचन से यानी सच्ची श्रद्धा से एक परमात्मा समर्थ की भक्ति स्वयं करता है तथा अपने अनुयायियों से कराता है।
👉 तीसरे वह सब अनुयायियों से समान व्यवहार करता है।
👉  चौथे उसके द्वारा बताया भक्ति  कर्म वेदों में वर्णित विधि के अनुसार होता है।
ये चार लक्षण गुरु में होते हैं। जो इन गुणों से युक्त नहीं है , उसको पूर्ण गुरु नही कहा जा सकता है।

अन्य लक्षण व प्रमाण से भी जाना जा सकता है..👇
सच्चा सतगुरु वो है जो हमारे सभी धर्मों के सदग्रन्थों से प्रमाणित ज्ञान व सतभक्ति देकर जन्म-मृत्यु से छुटकारा दिला दे।
सत गुरु की पहचान संत गरीबदास जी की प्रमाणित वाणी में -
" सतगुरु के लक्षण कहूं,
                        मधुरे बैन विनोद।
  चार वेद षट शास्त्र,
                         कहै अठारा बोध।।"

पूर्ण संत गुरु चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा।
सभी सद्ग्रन्थों के पूर्ण जानकर संत रामपाल जी महाराज हैं जो सतभक्ति देकर मानव को सभी बुराइयों से दूर कर रहे हैं।

पूर्ण सतगुरू से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करने से शुभ संस्कारों में वृद्धि होने से दुःख का वक्त सुख में बदलने लग जाता है।
जब तक सच्चे सत गुरु के सत्संग के विचार सुनने को नहीं मिलते तो भूलवश मानव अहंकार में जीता है। सच्चे सतगुरु के सत्संग से पता चलता है कि परमात्मा अहंकार से कोसों दूर है। और इस मनुष्य शरीर का सदुपयोग कैसे करना चाहिए ये भी सत्संग में ही पता चलता है।
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Wednesday 13 May 2020

त्रिदेव की स्थिति

Kabir
अब तक तीन शक्तियों का विवरण आया है।

1. पूर्णब्रह्म जिसे अन्य उपमात्मक नामों से भी जाना जाता है, जैसे सतपुरुष, अकालपुरुष, शब्द स्वरूपी राम, परम अक्षर ब्रह्म/पुरुष आदि। यह पूर्णब्रह्म असंख्य ब्रह्मण्डों का स्वामी है तथा वास्तव में अविनाशी है।

2. परब्रह्म जिसे अक्षर पुरुष भी कहा जाता है। यह वास्तव में अविनाशी नहीं है। यह सात शंख ब्रह्मण्डों का स्वामी है।


3. ब्रह्म जिसे ज्योति निरंजन, काल, कैल, क्षर पुरुष तथा धर्मराय आदि नामों से जाना जाता है, जो केवल इक्कीस ब्रह्मण्ड का स्वामी है। अब आगे इसी ब्रह्म (काल) की सृष्टी के एक ब्रह्मण्ड का परिचय दिया जाएगा, जिसमें तीन और नाम आपके पढ़ने में आयेंगे - ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव।

ब्रह्म तथा ब्रह्मा में भेद - एक ब्रह्मण्ड में बने सर्वोपरि स्थान पर ब्रह्म (क्षर पुरुष) स्वयं तीन गुप्त स्थानों की रचना करके ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव रूप में रहता है तथा अपनी पत्नी प्रकृति (दुर्गा) के सहयोग से तीन पुत्रों की उत्पत्ति करता है। उनके नाम भी ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव ही रखता है। जो ब्रह्म का पुत्र ब्रह्मा है वह एक ब्रह्मण्ड में केवल तीन लोकों (पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक तथा पाताल लोक) में एक रजोगुण विभाग का मंत्री (स्वामी) है। इसे त्रिलोकीय ब्रह्मा कहा है तथा ब्रह्म जो ब्रह्मलोक में ब्रह्मा रूप में रहता है उसे महाब्रह्मा व ब्रह्मलोकीय ब्रह्मा कहा है। इसी ब्रह्म (काल) को सदाशिव, महाशिव, महाविष्णु भी कहा है।

श्री विष्णु पुराण में प्रमाण:- चतुर्थ अंश अध्याय 1 पृष्ठ 230 - 231 पर श्री ब्रह्मा जी ने कहा:- जिस अजन्मा, सर्वमय विधाता परमेश्वर का आदि, मध्य, अन्त, स्वरूप, स्वभाव और सार हम नहीं जान पाते (श्लोक 83) जो मेरा रूप धारण कर संसार की रचना करता है, स्थिति के समय जो पुरूष रूप है तथा जो रूद्र रूप से विश्व का ग्रास कर जाता है, अनन्त रूप से सम्पूर्ण जगत् को धारण करता है। (श्लोक 86)
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Friday 8 May 2020

Stop Eating Meat मीट मास खाना बंद करो

Stop Eating Meat
( मीट खाना बंद करो )
आज़ का मानव समाज मांस खाकर महापाप का भागी बन रहा है।
                          - संत रामपाल जी महाराज

सभी पवित्र धर्म ग्रंथो/शास्रो में जीव हिंसा महापाप बताया हुआ है, लेकिन मनुष्य को ज्ञान के अभाव में जीवहिंसा करते क्योंकि सभी धर्म के धर्मगुरुओं ने शास्रो का मूल ज्ञान लोगो से छुपाकर अपना वर्चस्व के लिए अज्ञान का प्रचार प्रसार कर रहे है।
     मनुष्य ने कभी सोचा है कि, अगर मांस खाने से परमात्मा प्राप्ति होती, तो सबसे पहले मांसाहारी जानवरों को होती, जो केवल मांस ही खाते हैं।
मांस खाकर आप परमात्मा के बनाएं विधान को तोड़कर परमात्मा के दोषी बन रहे हो। ऐसा करने वाले को नरक में डाला जाता है।
जो व्यक्ति जीव हत्या करते हैं जैसे गाय, बकरी, मुर्गी, सुअर आदि की वह महापापी है और राक्षसो के समतुल्य है।
      जो व्यक्ति अपने परिवार के लिए सब कुछ करने को तैयार होता है और अपने संतान को अच्छी तरह से उसका पालन-पोषण करता है और उसको सक्षम बनाता है क्या वह व्यक्ति अपनी संतान का गला काट कर अपनी जीभ के स्वाद के खातिर उसकी बलि देकर क्या उसको खा सकता है अगर वह ऐसा नहीं कर सकता है तू फिर वह बेजुबान जानवरों की हत्या करके अपने जीभ के स्वाद के लिए क्यों खाता है क्योंकि वह भी किसी का बेटा है पिता है ऐसा करना मनुष्य को कहां तक शोभा देता है।
सभी धर्मों के ग्रंथों में बताया है कि जीव हिंसा महापाप है जैसा कि मुस्लिम धर्म के धर्म ग्रंथ कुरान शरीफ में बताया है कि हज़रत मुहम्मद जी जैसी इबादत आज का कोई मुसलमान नहीं कर सकता। उन्होंने मरी हुई गाय को अपनी शब्द शक्ति से जीवित किया था, कभी मांस नहीं खाया।
जबकि आज सर्व मुस्लिम समाज मांस खा रहा है, जो अल्लाह का आदेश नहीं है।
( मांस खाना परमेश्वर का आदेश नहीं ! पवित्र बाईबल (उत्पत्ति ग्रन्थ 1:29)
प्रभु ने मनुष्यों के खाने के लिए जितने बीज वाले छोटे पेड़ तथा जितने पेड़ों में बीज वाले फल होते हैं वे भोजन के लिए प्रदान किए हैं, माँस खाना नहीं कहा है।)
वर्तमान में सर्व मुसलमान श्रद्धालु माँस खा रहे हैं। परन्तु नबी मुहम्मद जी ने कभी माँस नहीं खाया तथा न ही उनके सीधे अनुयाईयों (एक लाख अस्सी हजार) ने माँस खाया।
केवल रोजा व बंग तथा नमाज किया करते थे। गाय आदि को बिस्मिल(हत्या) नहीं करते थे।

नबी मुहम्मद नमस्कार है,राम रसूल कहाया।

एक लाख अस्सी कूं सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।।

आत्मा अपनी वाणी को के माध्यम से मनुष्य को चेता रहे हैं कि -


कबीर, तिलभर मछली खायके,
                             कोटि गऊ दे दान।
            काशी करौंत ले मरे,
                           तो भी नरक निदान।।
अर्थ :-
तिल के समान भी मछली खाने वाले चाहे करोड़ो गाय दान कर लें, चाहे काशी कारोंत में सिर कटा ले वे नरक में अवश्य जाएंगे।
एक तरफ तो आप भक्ति करते हो, और दूसरी तरफ आप बेजुबान निर्दोष जानवरों की हत्या कर उनका मांस खाते हो। सभी जीव परमात्मा की प्यारी आत्मा है, तो फिर मांस खाने से परमात्मा प्राप्ति कैसे होगी?

वेदों, गीता जी आदि पवित्र सद्ग्रंथों में प्रमाण मिलता है कि जब-जब धर्म की हानि होती है व अधर्म की वृद्धि होती है तथा वर्तमान के नकली संत, महंत व गुरुओं द्वारा भक्ति मार्ग के स्वरूप को बिगाड़ दिया गया होता है। फिर परमेश्वर स्वयं आकर या अपने परमज्ञानी संत को भेज कर सच्चे ज्ञान के द्वारा धर्म की पुनः स्थापना करता है। वह भक्ति मार्ग को शास्त्रों के अनुसार समझाता है।
पूर्ण गुरु का एक ही नारा है -

जीव हमारी जाति है,

                           मानव धर्म हमारा ।
हिन्दु मुसलिम सिक्ख ईसाई,
                        धर्म नहीं कोई न्यारा ।।

तत्व दर्शी सन्त की शरण जाकर उनकी बताई भक्ति करके मोक्ष प्राप्ति प्राप्त हो सकती है और सभी प्रकार के विकार समाप्त हो जाएंगे।

कबीर साहेब जी कहते है कि 👇

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Thursday 7 May 2020

दहेज एक अभिश्राप

 दहेज़ : एक अभिशाप 


हमारे समाज में फैली कुरुतियां जिसमें खर्चीली शादियों की होड़ रहती है, अनेक प्रकार के व्यसन शराब, डांस, गाना डीजे बजते हैं, ये सभी नुकसान करते हैं, इनसे समाज को ग़लत दिशा मिल रही है। अतः इस प्रकार के आयोजनों पर पाबंदी लगनी चाहिए। और इस तरह सादगी पूर्ण विवाह होने चाहिए जिससे कि दहेज प्रथा व भ्रूण हत्या ओर छेड़छाड़ पर लगाम लग सके।

      सरकार तो दहेज प्रथा को रोकने के लिए कई अभियान चला रही है और बहुत पैसे खर्च कर रही हैं तो भी कोई खास फायदा नहीं हुआ है।
दहेज नाम ही कलंक है समाज में बेटियों को बचाना है तो दहेज हटाना होगा हैं ।
अब किसी पिता को अपनी बेटी के विवाह में दहेज देने की कोई चिंता नही रहेगी क्योंकि वास्तव में दहेज मुक्त तथा सभ्य समाज का निर्माण एक ऐसे संत के अनुयायियों के द्वारा किया जा रहा है जो अपने अनुयायियों को सत्य मार्ग पर चलने के लिए सभी धर्म ग्रंथों के तथा शास्त्रों के अनुसार बताकर करते हुए मात्र 17 मिनट में अंतर्जातीय विवाह अर्थात रमणी के माध्यम से कर रहे हैं जो समाज सुधार की एक अनोखी मिसाल कायम कर रहे हैं।
भारत में लोगों को एक नई जागरूकता मिली है मनुष्य फिजूल खर्च से बचता है........
ऐसा दहेज मुक्त समाज जिसके बारे में सपने में भी किसी ने नही सोचा होगा कि कोई महापुरुष आएगा और इस दहेज रूपी दानव से मुक्त कराएगा।

इनका एक ही नारा है :-
"अब सच होगा सबका सपना               दहेज मुक्त होगा भारत अपना"
                  - परम् संत रामपाल जी महाराज
जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज का मुख्य उद्देश्य है कि -

" एक स्वच्छ सुंदर और बुराइयों से मुक्त एक समान स्वच्छ, स्वस्थ, सुंदर समाज का निर्माण कर रहे हैं। "
ताकि बुराइयों को त्याग एक समाज का निर्माण किया जा सके ओर समाज में फैली को प्रथाओं को जड़ से समाप्त किया जा सके।
दहेज प्रथा जहर खाने के समान - संत रामपाल जी महाराज

शादियाँ वो भी बिना बरात बैंड बाजे के, बिना नाच-गाने के, बिना फिजूलखर्ची के अच्छी बात है ...
जब माँ-बाप कलेजे की कोर को दे देते है , 
 तो और क्या देना शेष रह जाता है ।
 बस अब ओर बेटी नही मरेगा


वह महान संत जिसके बारे में भारतवर्ष काफी अरसे से इंतजार कर रहा था उनका जन्म भारत की इस तपोभूमि पर हो चुका है और वहां संत को प्रमाणित करने के लिए अनेक भविष्य वक्ताओं ने बताया कि वह समाज का विकास तीनों प्रकार से कर सकेगा आर्थिक भौतिक और आध्यात्मिक से वह समाज का सुधार कर रहे हैं आप देख सकते हैं कि वह संत कौन हैं -

आ चुका है मुक्तिदाता, भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणी


ऐसे होगा समाज मे सुधार -
Vedio
👉   समाज सुधार

👉 भ्रूण हत्या और छेड़छाड़ 

👉 संस्कार और रिस्वत से बचेगा 

👉 दहेज मुक्त विवाह ( रमैनी )




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मानवता की कसौटी { मैं_उस_दोर_का_बेटा_हूं }

#मैं_उस_दोर_का_बेटा_हूं #जीवो_के_प्रति_दया_मेरे_भारत_की_संस्कृति हल खींचते समय यदि कोई बैल गोबर या मूत्र करने की स्थिति में होत...