Thursday 8 October 2020

मानवता की कसौटी { मैं_उस_दोर_का_बेटा_हूं }

#मैं_उस_दोर_का_बेटा_हूं
#जीवो_के_प्रति_दया_मेरे_भारत_की_संस्कृति

हल खींचते समय यदि कोई बैल गोबर या मूत्र करने की स्थिति में होता था तो किसान कुछ देर के लिए हल चलाना बन्द करके बैल के मल-मूत्र त्यागने तक खड़ा रहता था ताकि बैल आराम से यह नित्यकर्म कर सके,


यह आम चलन था। हमनें  (ईश्वर वैदिक) यह सारी बातें बचपन में स्वयं अपनी आंखों से देख हुई हैं।  जीवों के प्रति यह गहरी संवेदना उन महान पुरखों में जन्मजात होती थी जिन्हें आजकल हम अशिक्षित कहते हैं । यह सब अभी 25-30 वर्ष पूर्व तक होता रहा ।

उस जमाने का देसी घी यदि आजकल के हिसाब से मूल्य लगाएं तो इतना शुद्ध होता था कि  2 हजार रुपये किलो तक बिक सकता है । उस देसी घी को किसान विशेष कार्य के दिनों में हर दो दिन बाद आधा-आधा किलो घी अपने बैलों को पिलाता था।

टटीरी नामक पक्षी अपने अंडे खुले खेत की मिट्टी पर देती है और उनको सेती है। हल चलाते समय यदि सामने कहीं कोई टटीरी चिल्लाती मिलती थी तो किसान इशारा  समझ जाता था और उस अंडे वाली जगह को बिना हल जोते खाली छोड़ देता था । उस जमाने में आधुनिक शिक्षा नहीं थी ।

सब आस्तिक थे । दोपहर को किसान जब आराम करने का समय होता तो सबसे पहले बैलों को पानी पिलाकर चारा डालता और फिर खुद भोजन करता था । यह एक सामान्य नियम था ।

बैल जब बूढ़ा हो जाता था तो उसे कसाइयों को बेचना शर्मनाक सामाजिक अपराध की श्रेणी में आता था । बूढा बैल कई सालों तक खाली बैठा चारा खाता रहता था,  मरने तक उसकी सेवा होती थी । उस जमाने के तथाकथित अशिक्षित किसान का मानवीय तर्क था कि इतने सालों तक इसकी माँ का दूध पिया और इसकी कमाई खाई है , अब बुढापे में इसे कैसे छोड़ दें , कैसे कसाइयों को दे दें काट खाने के लिए ??? जब बैल मर जाता तो किसान फफक-फफक कर रोता था और उन भरी दुपहरियों को याद करता था जब उसका यह वफादार मित्र हर कष्ट में उसके साथ होता था । माता-पिता को रोता देख किसान के बच्चे भी अपने बुड्ढे बैल की मौत पर रोने लगते थे । पूरा जीवन काल तक बैल अपने स्वामी किसान की मूक भाषा को समझता था कि वह क्या कहना चाह रहा है ।


वह पुराना भारत इतना शिक्षित और धनाढ्य था कि अपने जीवन व्यवहार में ही जीवन रस खोज लेता था । वह करोड़ों वर्ष पुरानी संस्कृति वाला वैभवशाली भारत था ,
" मानव जीवन का महत्व किसी को पता नही है। आज हम जीवन की भागदौड में खुद को भूलते जा रही है, ओर एक दिन ऐसा आयेगा की इस चकाचौंध सी भागदौड़ मैं ख़ुद को खत्म कर देगे। "


सभी प्रकार के जीवों ने जन्म लिया और मर गये। यह प्रकिया तो हर एक यौनी में प्राप्त होती है और और इसी के चलते एक मानव तन के रूप में प्राप्त होता है।
इसकी वास्तविक जानकारी एक तत्व दर्शी संत दिया करते है, ओर वह तत्व ज्ञाता एक समय मे एक ही होता है।

#अपनी कलम से लिखी हुई लोचनात्मक रचना


👉 वर्तमान में वह तत्त्वदर्शी संत कौन है ?

📌जो स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत का निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं।
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