आओ जैन धर्म को जाने
(Come know Jainism)
दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म (Jain Dhram) को श्रमणों का धर्म कहा जाता है. जैन धर्म (Jain Dhram) का संस्थापक ऋषभ देव को माना जाता है, जो जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे और भारत के चक्रवर्ती(Jain Dhram) सम्राट भरत के पिता थे.
वेदों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का उल्लेख मिलता है. माना जाता है कि वैदिक साहित्य में जिन यतियों और व्रात्यों का उल्लेख मिलता है वे ब्राह्मण परंपरा के न होकर श्रमण परंपरा के ही थे.
( श्री ऋषभदेव जी को पूर्ण परमात्मा आकर मिले थे यह बड़ी नेक आत्मा के थे ।परमेश्वर ने इनको ज्ञान दिया जो साधना आप कर रहे हैं मोक्ष मार्ग नहीं है
" ऋषभ देव के आईया वो कवि नाम में करतार "
कबीर साहिब ने बताया कि मैं वह कवि देव हूं जिसका जिक्र वेदों में है।)
आर्यों के काल में ऋषभदेव और अरिष्टनेमि को लेकर जैन धर्म की परंपरा का वर्णन भी मिलता है।
महाभारतकाल में इस धर्म के प्रमुख नेमिनाथ थे:
(1) जैन धर्म के संस्थापक और पहले तीर्थंकर थे- ऋषभदेव.
(2) जैन धर्म (Jain Dhram) के 23वें तीर्थंकर थे- पार्श्वनाथ
(3) पार्श्वनाथ काशी के इक्ष्वाकु वंशीय राजा अग्रसेन के पुत्र थे.
(4) पार्श्वनाथ को 30 साल की उम्र में वैराग्य उत्पन्न हुआ, जिस कारण वो गृह त्यागकर संयासी हो गए.
(5) पार्श्वनाथ के द्वारा दी गई शिक्षा थी- हिंसा न करना, चोरी नृ करना, हमेशा सच बोलना, संपत्ति न रखना.
(6) महावीर जैन धर्म (Mahaveer Jain Dhram) के 24वें तीर्थंकर हैं.
(7) महावीर का जन्म 540 ई. पू. पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था.
(8) इनके पिता राजा सिद्धार्थ ज्ञातृक कुल के सरदार थे और माता त्रिशला लिच्छिवी राजा चेटक की बहन थीं.
(9) महावीर की पत्नी का नाम यशोदा और पुत्री का नाम अनोज्जा प्रियदर्शनी था.
(10) महावीर के बचपन का नाम वर्द्धमान था.
(11) महावीर का साधना काल 12 साल 6 महीने और 15 दिन का रहा. इस अवधि में भगवान ने तप, संयम और साम्यभाव की विलक्षण साधना की. इसी समय से महावीर जिन (विजेता), अर्हत (पूज्य), निर्ग्रंध (बंधनहीन) कहलाए.
यह सभी शास्त्रो के विरुद्ध साधना होने के कारण निष्फल मानी जाती है, ओर इससे जन्म मरण का रोग नही मिटता है।
(12) महावीर ने अपना उपदेश प्राकृत यानी अर्धमाग्धी में दिया. लेकिन पूर्ण नही
अधूरा ज्ञान है।
(13) महावीर के पहले अनुयायी उनके दामाद जामिल बने.
(14) प्रथम जैन भिक्षुणी नरेश दधिवाहन की बेटी चंपा थी.
(15) महावीर ने अपने शिष्यों को 11 गणधरों में बांटा था.
(16) आर्य सुधर्मा अकेला ऐसा गंधर्व था जो महावीर की मृत्यु के बाद भी जीवित रहा.
(17) जैन धर्म दो भागों में विभाजित है- श्वेतांबर जो सफेद कपड़े पहनते हैं और दिगंबर जो नग्नावस्था में रहते हैं.
(18) भद्रबाहु के शिष्य दिगंबर और स्थूलभद्र के शिष्य श्वेतांबर कहलाए.
(19) दूसरी जैन सभा 512 में वल्लभी गुजरात में हुई.
(20) जैन धर्म के त्रिरत्न हैं- सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचरण.
(21) जैन धर्म में ईश्वर नहीं आत्मा की मान्यता है.
(22) महावीर पुनर्जन्म और कर्मवाद में विश्वास रखते थे.
(23) जैन धर्म ने अपने आध्यात्मिक विचारों को सांख्य दर्शन से ग्रहण किया.
(24) जैन धर्म को मानने वाले राजा थे- उदायिन, वंदराजा, चंद्रगुप्त मौर्य, कलिंग नरेश खारवेल, राजा अमोघवर्ष, चंदेल शासक.
(25) मौर्योत्तर युग में मथुरा जैन धर्म का प्रसिद्ध केंद्र था.
(26) जैन तीर्थंकरों की जीवनी कल्पसुत्र में है.
(27) जैन तीर्थंकरों में संस्कृत का अच्छा विद्वान नयनचंद्र था.
(28 ) मथुरा कला का संबंध जैन धर्म से है.
(29) 72 साल में महावीर की मृत्यु 468 ई. पू. में बिहार राज्य के पावापुरी में हुई थी.
(30) मल्लराजा सृस्तिपाल के राजप्रसाद में महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था.
वास्तविक धर्म का ज्ञान
कबीर परमेश्वर जी ने सभी धर्मों के लोगों को संदेश दिया कि सब मानव एक परमात्मा की संतान हैं।
अज्ञानता वश हम अलग-अलग जाति धर्मों में बंट गये।
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, आपस में सब भाई-भाई।
आर्य जैनी और विश्नोई, एक प्रभु के बच्चे सोई।।
आज का समाज परमात्मा कबीर जी को एक सामान्य संत समझता है जबकि अपनी महिमा बताते हुए परमात्मा कबीर जी ने हमें बताया कि वही सृष्टि के रचनहार हैं और चारों युगों में आते हैं।
आज परमात्मा की सम्पूर्ण जानकारी संत रामपाल जी महाराज ही सबको बता रहे हैं।
अधिक जानकारी प्राप्त करे -
Please Visit Website :- www.supremegod.org
गीता अध्याय 15 के श्लोक 4 में कहा गया है कि तत्वदर्शी संत की खोज करने के बाद उस परमेश्वर के परम् पद अर्थात सतलोक की पहचान करनी चाहिए जहाँ जाने के बाद मनुष्य का जन्म मरण नहीं होता।
ReplyDelete