Sunday 17 May 2020

विवाह कैसे करे ? How to get married ?

              विवाह ( Wedding )

               " विवाह कैसे करें "
जैसे श्री देवी दुर्गा जी ने अपने तीनों पुत्रों (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) का विवाह किया था।

भगवान ब्रह्म (काल) व माता भवानी (प्रकृति, अष्टंगी) ने तीनो पुत्रों का विवाह भगवान ब्रह्मा को सावित्रा, भगवान विष्णु को लक्ष्मी, भगवान शंकर को पार्वती पत्नी रूप में दी शब्द शक्ति से विवाह सम्पन किया।


श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाण है कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोई बाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे बजा था, न कोई नृत्य किया गया था।
श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्रा श्री ब्रह्मा जी से कहा कि हे ब्रह्मा ! यह सावित्रा नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दी जाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्रा श्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहा कि ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ।
तीनों अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व का विस्तार हुआ।

विवाह जो सुप्रथा से हुआ, वह आज तक सुखी जीवन जी रहे हैं। जैसे श्री ब्रह्मा जी तथा श्री विष्णु जी

 वर्तमान समय में सक्षम लोग महंगी शादियां कर रहे हैं। इससे यह एक परम्परा बन गई है। लोग शादियों में लाखो रुपये खर्च कर देते हैं यह सिर्फ अपने वर्चस्व के कारण देखा देखी कर रहे हैं, इसका प्रभाव निम्न वर्ग तथा मध्यम वर्ग पर पढ़ रहा है लोग उनको देखकर उनकी बराबरी करने की होड़ मच चुकी है।

हमारे समाज में फैली कुरुतियां जिसमें खर्चीली शादियों की होड़ रहती है,अनेक प्रकार के व्यसन शराब, डांस , गाना डीजे बजते हैं, नशा  ये सभी नुकसान करते हैं, इनसे समाज को ग़लत दिशा मिल रही है, अतः इस प्रकार के आयोजनों पर पाबंदी लगनी चाहिए। और इस तरह सादगी पूर्ण विवाह होने चाहिए जिससे कि दहेज प्रथा व भ्रूण हत्या पर लगाम लग सके।



👉 विवाह में प्रचलित वर्तमान परंपरा का त्याग:- 
विवाह में व्यर्थ का खर्चा त्यागना पड़ेगा। जैसे बेटी के विवाह में बड़ी बारात का आना, दहेज देना, यह व्यर्थ परंपरा है। जिस कारण से बेटी परिवार पर भार मानी जाने लगी है और उसको गर्भ में ही मारने का सिलसिला शुरू है जो माता-पिता के लिए महापाप का कारण बनता है। बेटी देवी का स्वरूप है। हमारी कुपरम्पराओं ने बेटी को दुश्मन बना दिया।

"अब सच होगा सबका सपना
दहेज मुक्त होगा भारत अपना"

👉 विवाह में ज्ञानहीन नाचते हैं
एक दिन समाचार पत्रा में पढ़ा कि दिल्ली का लड़का बम्बई विवाह के लिए कार में जा रहा था। उसके साथ दोनों बहनों के पति भी उसी कार में सवार थे। पहले दिन सब परिवार वाले (बहनें, माता-पिता, भाई-बटेऊ, चाचे-ताऊ) डी.जे. बजाकर नाच रहे थे। उधमस उतार रखा था। रास्ते में दुल्हे वाली गाड़ी बड़े ट्राले से टकराई। सर्व कार के यात्रा मारे गए। दुल्हा मरा, दोनों बहनें विधवा हुई। एक ही पुत्रा था, सर्वनाश हो गया। अब नाच लो डी.जे. बजाकर। परमात्मा की भक्ति करने से ऐसे संकट टल जाते हैं। इसलिए मेरे ( रामपाल दास के ) अनुयाईयों को सख्त आदेश है कि परमात्मा से डरकर कार्य करो।
सामान्य विधि से विवाह करो। इस गंदे लोक (काल के लोक) में एक पल का विश्वास नहीं कि कब बिजली गिर जाए।



प्रश्न :- बारात का प्रचलन कैसे हुआ? 
उत्तर :- राजा लोगों से प्रारम्भ हुआ। वे लड़के के विवाह में सेना लेकर जाते थे। रास्ते में राजा की सुरक्षा के लिए सेना जाती थी। जिसका सब खर्च लड़की वाला राजा वहन करता था।
सेठ-साहूकार दहेज में अधिक आभूषण तथा धन देते थे। वे गाँव के अन्य गरीब वर्ग के व्यक्तियों को दिहाड़ी पर ले जाते थे जो सुरक्षा के लिए होते थे। उनको पहले दिन लड़के वाला अपने घर पर मिठाई खिलाता था। लड़की वाले से प्रत्येक रक्षक को एक चाँदी का रूपया तथा एक पीतल का गिलास दिलाया जाता था। जो गरीब वर्ग अपनी गाड़ी तथा बैल ले जाते थे, उनको कुछ अधिक राशि का प्रलोभन दिया जाता था। पहले जंगल अधिक होते थे। यातायात के साधन नहीं थे। इस प्रकार यह एक परम्परा बन गई। उस समय अकाल गिरते थे। लोग निर्धन होते थे। कोई धनी अकेला मिल जाता था तो उसको लूटना आम बात थी। इस कारण से बारात रूपी सेना का प्रचलन हुआ। फिर यह एक लोग-दिखावा परम्परा बन गई जिसकी अब बिल्कुल आवश्यकता नहीं है।


प्रश्न :- भात तथा न्योंदा-न्यौंदार कैसे चला ?
उत्तर :- उसका मूल भी बारात का आना, दहेज का देना। बारात ले जाने के लिए लड़के वाले द्वारा मिठाई खिलाना। लड़की वाले के लिए भी उस बारात के लिए मिठाई तथा रूपया-गिलास देना आदि के कारण भात तथा न्यौता (न्योंदा) प्रथा प्रारम्भ हुई। न्योता समूह में गाँव तथा आसपास गवांड गाँव के प्रेमी-प्यारे व्यक्ति होते हैं। जिसके लड़के या लड़की का विवाह होता था तो अकेला परिवार खर्च वहन नहीं कर सकता था। उसके लिए लगभग सौ या अधिक सदस्य उस समूह में होते हैं। जिसके बच्चे का विवाह होता था तो सब सदस्य अपनी वित्तीय स्थिति अनुसार न्योता (धन राशि) विवाह वाले के पिता को देते हैं। कोई सौ रूपये, कोई दो सौ रूपये, कोई कम, कोई अधिक जो एक प्रकार का निःशुल्क उधार होता है। उस पर ब्याज नहीं देना पड़ता। सबका न्योते का धन लिखा जाता है। प्रत्येक सदस्य की बही (डायरी) में प्रत्येक विवाह पर दिया न्योता लिखा होता है। इस प्रकार विवाह वाले परिवार को धन की समस्या नहीं आती है।

भात :- भात भी इसी कड़ी में भरा जाता है। बहन के बच्चों के विवाह में कुछ कपड़े तथा नकद धन देना (भाई द्वारा की गई सहायता) भात कहा जाता है जो धन बहन को लौटाना नहीं होता। जिन बहनों के भाई नहीं हैं, वे उस दिन अति दुःखी होती हैं, एकान्त में बैठकर रोती हैं।

पीलिया :- लड़की को संतान उत्पन्न होने पर मायके वालों की ओर से जच्चा के लिए घर का देशी शुद्ध घी, कुछ गौन्द (घी+आटा भूनकर+गोला+अजवायन+काली मिर्च का मिश्रण गौन्द कहलाता है), नवजात बच्चे के छोटे-छोटे कपड़े (झूगले) भी मायके वाले तथा लड़की की ननंदों द्वारा लाए जाते हैं। यह परंपरा है जो कपड़े एक वर्ष के पश्चात् व्यर्थ हो जाते हैं। इस तरह की परंपरा को त्यागना है क्योंकि जीवन के सफर में व्यर्थ का भार है। आप अपनी बेटी की सहायता कर सकते हैं। जैसे गाय-भैंस लेनी है।
बेटी की वित्तीय स्थिति कमजोर है तो उसको नकद रूपये दे सकते हैं, परंतु विवाह के समय नहीं। बेटी का आपकी संपत्ति में से हक दे सकते हैं, अगर बेटी लेना चाहे तो। बेटी को चाहिए कि आवश्यकता पड़ने पर धन ले ले, परंतु फिर लौटा दे। परमात्मा पर विश्वास रखे। आपका सम्मान बना रहेगा।

समाधान :- इन सबका समाधान संत रामपाल जी महाराज बताते है कि विवाह को पाँचवें वेद के अनुसार विवाह रस्म करते हैं जिसमें कोई उपरोक्त परम्परा की आवश्यकता नहीं पड़ती। विवाह पर तथा अन्य अवसरों लड़की-लड़के वाले पक्ष का कोई खर्च नहीं कराना होता। केवल कन्यादान यानि बेटी दान करना है। लड़की अपने पहनने के लिए केवल चार ड्रैस ले जा सकती है। जूता तो पहन ही रखा है, बस। जिस घर में जाएगी, वह परिवार उस बेटी को अपने घर के सदस्य की तरह रखेगा। अपने घर की वित्तीय स्थिति के अनुसार अन्य सदस्य के समान सर्व आवश्यक वस्तुऐं उपलब्ध कराएगा।
बेटी अपने माता-पिता, भाई-भाभी पर कोई भार नहीं बनेगी। जब कभी अपने मायके आएगी तो कोई सूट तथा नकद नहीं लेगी। जिस कारण से भाभी-भाई को भी प्यारी लगेगी।
भाभी को ननंद इसीलिए खटकती है कि आ गई चार-पाँच हजार खर्च करवा कर जाएगी। परंतु हमारी बेटी सम्मान के साथ आएगी और सम्मान के साथ लौट जाएगी। अपने मायके वालों से कोई वस्तु नहीं लेगी। जिससे दोनों पक्षों का परस्पर अधिक प्रेम सदा बना रहेगा। भक्ति भी अच्छी होगी। इस प्रकार जीने की यथार्थ राह पर चलकर हम शीघ्र मंजिल पर (मोक्ष तक) पहुँचेंगे।

हमारे समाज में फैली कुरुतियां जिसमें खर्चीली शादियों की होड़ रहती है, अनेक प्रकार के व्यसन शराब, डांस , गाना डीजे बजते हैं, ये सभी नुकसान करते हैं, इनसे समाज को ग़लत दिशा मिल रही है, अतः इस प्रकार के आयोजनों पर पाबंदी लगनी चाहिए। और इस तरह सादगी पूर्ण विवाह होने चाहिए जिससे कि दहेज प्रथा व भ्रूण हत्या पर लगाम लग सके।
संत रामपाल जी महाराज ने जो समाज सुधारक का बीड़ा उठाया है वह पूरे भारत के कोने कोने में ही नहीं पूरे विश्व में जायेगा जो हर कन्या बेटी का उद्धार होगा और अपने आप जीवन मे दहेज मुक्त हो जाएगी ऐसे संत भारतवर्ष में एक ही है।
दहेज रूपी बुराई को समाज से दूर करना है ऐसे ही समाज सुधार होगा।



दहेज नाम ही कलंक है समाज में ।

बेटियों को बचाना है तो दहेज हटाना होगा हैं ।

मानव समाज में व्याप्त बुराईयों जैसे दहेज प्रथा व कन्या भ्रूण हत्या का समूल उन्मूलन केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के द्वारा बताये हुए तत्व ज्ञान से ही सम्भव है।

संत रामपाल जी महाराज के अनुयाई उनके आदेशानुसार दहेज रहित शादी करके सामाजिक कुरीतियां दूर करके भारत को फिर से सोने की चिड़िया बनाएंगे।

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7 comments:

  1. जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
    हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।
    -पूर्ण संत रामपाल जी महाराज
    पूर्ण गुरु समाज से जाति व धर्म का भेद मिटाता है।

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  2. जीवन अनमोल है

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  3. अब किसी बेटी को आत्महत्या करने की जरूरत नहीं पड़ेगी आजकल रोजाना खबरों के अंदर आता है दहेज के लिए बेटियों पर अत्याचार हो रहा है।
    इनसभी ने संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान से निजात दिलायेगें।

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  4. शादियाँ 😲 वो भी बिना बरात बैंड बाजे के, बिना नाच-गाने के, बिना फिजूलखर्ची के ।
    अच्छी बात है
    जब माँ-बाप कलेजे की कोर को दे देते है तो और क्या देना शेष रह जाता है ।
    परम संत रामपाल जी महाराज जी महान संत है और उनका ज्ञान भी।

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  5. सरकार तो दहेज प्रथा को रोकने के लिए कई अभियान चला रही है और बहुत पैसे खर्च कर रही हैं तो भी कोई खास फायदा नहीं हुआ है लेकिन संत रामपाल जी महाराज जी की ऐसी मुहिम से दहेज प्रथा जड़ से खत्म होती जा रही है ऐसे महापुरुष को सरकार को सम्मान देना चाहिए।

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  6. दहेज लेन-देन नहीं करने के बारे में प्रत्येक व्यक्ति अपनी सहमति देता है , लेकिन वास्तविकता में समय आने पर वह दहेज का लेनेदेन जरूर करता है परन्तु रामपाल जी महाराज के शिष्यों ने दहेज रहित शादी करके दहेज़ रूपी राक्षस को जड़ से समाप्त कर दिया ।। बात तो माननी पड़ेगी।

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  7. दहेज प्रथा जहर खाने के समान...!!
    - संत रामपाल जी महाराज

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