Friday 8 May 2020

Stop Eating Meat मीट मास खाना बंद करो

Stop Eating Meat
( मीट खाना बंद करो )
आज़ का मानव समाज मांस खाकर महापाप का भागी बन रहा है।
                          - संत रामपाल जी महाराज

सभी पवित्र धर्म ग्रंथो/शास्रो में जीव हिंसा महापाप बताया हुआ है, लेकिन मनुष्य को ज्ञान के अभाव में जीवहिंसा करते क्योंकि सभी धर्म के धर्मगुरुओं ने शास्रो का मूल ज्ञान लोगो से छुपाकर अपना वर्चस्व के लिए अज्ञान का प्रचार प्रसार कर रहे है।
     मनुष्य ने कभी सोचा है कि, अगर मांस खाने से परमात्मा प्राप्ति होती, तो सबसे पहले मांसाहारी जानवरों को होती, जो केवल मांस ही खाते हैं।
मांस खाकर आप परमात्मा के बनाएं विधान को तोड़कर परमात्मा के दोषी बन रहे हो। ऐसा करने वाले को नरक में डाला जाता है।
जो व्यक्ति जीव हत्या करते हैं जैसे गाय, बकरी, मुर्गी, सुअर आदि की वह महापापी है और राक्षसो के समतुल्य है।
      जो व्यक्ति अपने परिवार के लिए सब कुछ करने को तैयार होता है और अपने संतान को अच्छी तरह से उसका पालन-पोषण करता है और उसको सक्षम बनाता है क्या वह व्यक्ति अपनी संतान का गला काट कर अपनी जीभ के स्वाद के खातिर उसकी बलि देकर क्या उसको खा सकता है अगर वह ऐसा नहीं कर सकता है तू फिर वह बेजुबान जानवरों की हत्या करके अपने जीभ के स्वाद के लिए क्यों खाता है क्योंकि वह भी किसी का बेटा है पिता है ऐसा करना मनुष्य को कहां तक शोभा देता है।
सभी धर्मों के ग्रंथों में बताया है कि जीव हिंसा महापाप है जैसा कि मुस्लिम धर्म के धर्म ग्रंथ कुरान शरीफ में बताया है कि हज़रत मुहम्मद जी जैसी इबादत आज का कोई मुसलमान नहीं कर सकता। उन्होंने मरी हुई गाय को अपनी शब्द शक्ति से जीवित किया था, कभी मांस नहीं खाया।
जबकि आज सर्व मुस्लिम समाज मांस खा रहा है, जो अल्लाह का आदेश नहीं है।
( मांस खाना परमेश्वर का आदेश नहीं ! पवित्र बाईबल (उत्पत्ति ग्रन्थ 1:29)
प्रभु ने मनुष्यों के खाने के लिए जितने बीज वाले छोटे पेड़ तथा जितने पेड़ों में बीज वाले फल होते हैं वे भोजन के लिए प्रदान किए हैं, माँस खाना नहीं कहा है।)
वर्तमान में सर्व मुसलमान श्रद्धालु माँस खा रहे हैं। परन्तु नबी मुहम्मद जी ने कभी माँस नहीं खाया तथा न ही उनके सीधे अनुयाईयों (एक लाख अस्सी हजार) ने माँस खाया।
केवल रोजा व बंग तथा नमाज किया करते थे। गाय आदि को बिस्मिल(हत्या) नहीं करते थे।

नबी मुहम्मद नमस्कार है,राम रसूल कहाया।

एक लाख अस्सी कूं सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।।

आत्मा अपनी वाणी को के माध्यम से मनुष्य को चेता रहे हैं कि -


कबीर, तिलभर मछली खायके,
                             कोटि गऊ दे दान।
            काशी करौंत ले मरे,
                           तो भी नरक निदान।।
अर्थ :-
तिल के समान भी मछली खाने वाले चाहे करोड़ो गाय दान कर लें, चाहे काशी कारोंत में सिर कटा ले वे नरक में अवश्य जाएंगे।
एक तरफ तो आप भक्ति करते हो, और दूसरी तरफ आप बेजुबान निर्दोष जानवरों की हत्या कर उनका मांस खाते हो। सभी जीव परमात्मा की प्यारी आत्मा है, तो फिर मांस खाने से परमात्मा प्राप्ति कैसे होगी?

वेदों, गीता जी आदि पवित्र सद्ग्रंथों में प्रमाण मिलता है कि जब-जब धर्म की हानि होती है व अधर्म की वृद्धि होती है तथा वर्तमान के नकली संत, महंत व गुरुओं द्वारा भक्ति मार्ग के स्वरूप को बिगाड़ दिया गया होता है। फिर परमेश्वर स्वयं आकर या अपने परमज्ञानी संत को भेज कर सच्चे ज्ञान के द्वारा धर्म की पुनः स्थापना करता है। वह भक्ति मार्ग को शास्त्रों के अनुसार समझाता है।
पूर्ण गुरु का एक ही नारा है -

जीव हमारी जाति है,

                           मानव धर्म हमारा ।
हिन्दु मुसलिम सिक्ख ईसाई,
                        धर्म नहीं कोई न्यारा ।।

तत्व दर्शी सन्त की शरण जाकर उनकी बताई भक्ति करके मोक्ष प्राप्ति प्राप्त हो सकती है और सभी प्रकार के विकार समाप्त हो जाएंगे।

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