Wednesday 24 June 2020

सच्चा रक्षक कौन हैं ?

सच्चा रक्षक कौन है ?

प्रकृति का जन्मदाता व जीवाआत्मा हमेशा बनती व बिगड़ती रहती है। यह परिवर्तनशील है, लेकिन दवाल यह उठता है यह भी किसी के द्वारा संचालित हो रही है। इसको भी कोई बड़ी शक्ति नियंत्रण कर रही है। {Kabir}

आखिर वह कौनसी शक्ति यह सवाल सभी के जहन में उठता होगा।
वैज्ञानिक बताते है कि यह रासायनिक क्रियाओं के आपसी तालमेल के बनते बिगड़ते रासायनिक परिवर्तन के कारण होता है, लेकिन वास्तविकता में यह भी अंत मे आकर विफल हो जाते है। इसका ओर छोर तक नही जाया जा सकता है। वास्तव में कोई है ऐसी महान शक्ति जो इसको समान बनाए रखती हैं। जब प्राकृतिक आपदाएं, भूकम्प, महामारी आदि से कौन रक्षक बनकर सभी की रक्षा करता है।
दूसरे पहलू लोकमान्यता के आधार पर बताया जाता है कि दैविक शक्तियां इनकी रक्षा करते है। तो कौनसी वह शक्तियां है जो जीवात्माओं की रक्षा करती है।

इसको जानने के लिए सभी धर्म के सदग्रंथो के आधार कर पता चलता है और धर्मगुरुओं में माध्यम से वेद, गीता, पुराण, कुरान, बाईबल में प्रमाणित करके सभी धर्म गुरुओं ने बताया कि जीवात्मा अविनाशी है इसका क़भी अंत नही होता है, सिर्फ शरीर नाशवान हैं।
लेकिन सभी लोकवेद के आधार पर कहा सुना करते थे कि ऐसी महान शक्ति है जो सभी का संचालन करती हैं।
लेकिन वह वास्तव में कौन है जो सभी की रक्षा करती है।
उसकी सत्यता के लिए धर्म ग्रंथो का सहारा लेना होगा, लेकिन सभी अपना धर्म को श्रेस्ट करने के लगी हुए है ओर वास्तिविकता को जानने के लिए तत्वदर्शी संत इसका राज खोलकर बताते है।

- वही बताते है कि हमारी रक्षा करने वाला कोन है ?
- उसको प्राप्त किस विधि से किया जा सकता है?
- पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने से क्या लाभ प्राप्त होते है ?
kabir )

इन सबकी जानकारी कोई बिरला तत्वदर्शी संत बताता है कि -

सभी धर्म ग्रंथ बताते है कि वह महान शक्ति एक राजा के समान है, सदृश्य है, देखने योग्य है।

श्री गीता जी में प्रमाण है कि :-

💠गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि वास्तव में अविनाशी परमात्मा तो इन दोनों (क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष) से दूसरा ही है वही तीनों लोकों में प्रवेश करके सर्व का धारण पोषण करता है वही वास्तव में परमात्मा कहा जाता है

💠गीता अध्याय 3 श्लोक 14 से 15 में भी स्पष्ट है कि ब्रह्म काल की उत्पति परम अक्षर पुरूष से हुई वही परम अक्षर ब्रह्म ही यज्ञों में पूज्य है।

💠 वास्तविक भक्ति विधि के लिए गीता ज्ञान दाता प्रभु (ब्रह्म) किसी तत्वदर्शी की खोज करने को कहता है (गीता अध्याय 4 श्लोक 34) इस से सिद्ध है गीता ज्ञान दाता (ब्रह्म) द्वारा बताई गई भक्ति विधि पूर्ण नहीं है।

💠गीता अध्याय 8 श्लोक 5 तथा 7 में अपनी भक्ति करने को कहा है तथा युद्ध भी कर, निःसंदेह मुझे प्राप्त होगा, परंतु जन्म-मृत्यु दोनों की बनी रहेगी। अपनी भक्ति का मंत्र अध्याय 8 के श्लोक 13 में बताया है कि मुझ ब्रह्म की भक्ति का केवल एक ओम अक्षर है। इस नाम का जाप अंतिम श्वांस तक करने वाले को इससे मिलने वाली गति यानि ब्रह्मलोक प्राप्त होता है। 

💠गीता अध्याय 8 के श्लोक 16 में स्पष्ट किया है कि ब्रह्मलोक में गए साधक भी लौटकर संसार में जन्म लेते हैं। युद्ध जैसे भयंकर कर्म भी करने पड़ेंगे। जिस कारण से काल ब्रह्म के पुजारियों को न तो शांति मिलेगी, न सनातन परम धाम।

💠अध्याय 11 श्लोक 47 में पवित्र गीता जी को बोलने वाला प्रभु काल कह रहा है कि ‘हे अर्जुन यह मेरा वास्तविक काल रूप है'।

💠गीता अध्याय 8 श्लोक 17
अक्षर पुरूष यानि परब्रह्म का जो एक दिन है उसको एक हजार युग की अवधि वाला और रात्रि को भी एक हजार युग तक की अवधि वाली तत्व से जानते हैं वे तत्वदर्शी संत परब्रह्म के दिन-रात्रि के तत्व को जानने वाले हैं।

💠गीता अध्याय 8 श्लोक 20 से 22 में किसी अन्य पूर्ण परमात्मा के विषय में कहा है जो वास्तव में अविनाशी है।

💠गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में उस तत्वदर्शी संत की पहचान बताई है कि वह संसार रूपी वृक्ष के प्रत्येक भाग का ज्ञान कराएगा। उसी से पूछो। 

💠गीता अध्याय 15 के श्लोक 4 में कहा है कि उस तत्वदर्शी संत के मिल जाने के पश्चात् उस परमेश्वर के परम पद की खोज करनी चाहिए अर्थात् उस तत्वदर्शी संत के बताए अनुसार साधना करनी चाहिए जिससे पूर्ण मोक्ष(अनादि मोक्ष) प्राप्त होता है। गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि मैं भी उसी की शरण में हूँ।

💠गीता अध्याय 15 श्लोक 1
गीता का ज्ञान सुनाने वाले प्रभु ने कहा कि ऊपर को पूर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वर रूपी जड़ वाला नीचे को शाखा वाला अविनाशी विस्त्तारित, पीपल का वृक्ष रूप संसार है जिसके
छोटे-छोटे हिस्से या टहनियाँ पत्ते कहे हैं उस संसार रूप वृक्ष को जो सर्वांगों सहित जानता है वह पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी है।

💠गीता अध्याय 07 श्लोक 12 में गीता ज्ञान दाता ब्रह्म कह रहा है कि तीनों देवताओं द्वारा जो भी उत्पति, स्थिति तथा संहार हो रहा है इसका निमित्त मैं ही हूँ।
परन्तु मैं इनसे दूर हूँ। कारण है कि काल को शापवश एक लाख प्राणियों का आहार करना होता है। इसलिए मुख्य कारण अपने आप को कहा है तथा काल भगवान तीनों देवताओं से भिन्न ब्रह्म
लोक में रहता है तथा इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में रहता है। इसलिए कहा है कि मैं उनमें तथा वे मुझ में नहीं हैं।

💠गीता अध्याय 16 श्लोक 23
जो साधक शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी इच्छा से
मनमाना आचरण करता है वह न सिद्धि को प्राप्त होता है न उसे कोई सुख प्राप्त होता है, न उसकी गति यानि मुक्ति होती है अर्थात् शास्त्र के विपरित भक्ति करना व्यर्थ है। 

💠गीता जी के अध्याय 18 के श्लोक 64 तथा अध्याय 15 के श्लोक 4 में स्पष्ट है कि स्वयं काल ब्रह्म कह रहा है कि हे अर्जुन! मेरा उपास्य देव (इष्ट) भी वही परमात्मा (पूर्ण ब्रह्म) ही है तथा मैं भी उसी की शरण हूँ तथा वही सनातन स्थान (सतलोक) ही मेरा परम धाम है। क्योंकि ब्रह्म भी वहीं (सतलोक) से निष्कासित है।

💠गीता जी के अध्याय 18 के श्लोक 66 में गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य परम अक्षर ब्रह्म की शरण में जाने को कहा है।

💠गीता अध्याय 17 श्लोक 23-28 में ओम मंत्र जो क्षर पुरूष का है तथा तत मंत्र जो सांकेतिक है, यह अक्षर पुरूष की साधना का है तथा सत मंत्र भी सांकेतिक है। यह परम अक्षर पुरूष की साधना का है। इन तीनों मंत्रों के जाप से पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है। 

फजाईले जिक्र में आयत नं. 1, 2, 3, 6 तथा 7 में स्पष्ट प्रमाण है कि तुम कबीर अल्लाह कि बड़ाई बयान करो। वह कबीर अल्लाह तमाम पोसीदा और जाहिर चीजों को जानने वाला है और वह कबीर है और आलीशान रूत्बे वाला है।

पवित्र कुरान शरीफ सुरत-फुर्कानि नं. 25 आयत नं. 58 में
“अिबादिही खबीरा(कबीरा) कहा गया है।
कबीर अल्लाह ही इबादत के योग्य है।
सुरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 में लिखा है कि कबीर परमात्मा ने छः दिन में सृष्टी की रचना की तथा सातवें दिन तख्त पर जा विराजा।

पवित्र अथर्ववेद काण्ड नं.4 अनुवाक नं. 1 मंत्र 7
इस मंत्र में यह भी स्पष्ट कर दिया कि उस परमेश्वर का नाम कविर्देव है।

सभी शास्त्रो व संतो की वाणियों में प्रमाण है। कबीर साहेब ही परमात्मा हैं।

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Sunday 21 June 2020

सबसे बड़ा उपकार मात-पिता की सेवा ( Father Day )

माता-पिता की सेवा व आदर करना परम कर्तव्य  ( #जीने_की_राह )

Father Day ( Kabir)
प्रत्येक माता-पिता की तमन्ना होती है कि मेरी संतान योग्य बने। समाज में बदनामी न ले। अच्छे चरित्र वाली हो, आज्ञाकारी हो। वृद्धावस्था में हमारी सेवा करे। हमारी बहु हमारे कहने में चलने वाली आए। समाज में हमारी इज्जत रखे।
Father Day (Kabir)

वृद्धावस्था में हमारी सेवा करे। प्यार से व्यवहार करे।
सत्ययुग, त्रोता, द्वापर तक यह मर्यादा चरम पर रही। सब सुखी जीवन जीते थे। 
#कलयुग में कुछ समय तक तो ठीक रहा, परंतु वर्तमान में स्थिति विपरीत ही है।
इसे सुधारने का उद्देश्य लेखक (तत्वदर्शी_संत_रामपाल_जी_महाराज) रखता है। आशा भी करता हूँ कि भगवान की कृपा से ज्ञान के प्रकाश से सब संभव हो जाता है, हो भी रहा है और होगा, यह मेरी आत्मा मानती है।

Father Day (kabir)

-: माता का संतान के प्रति प्यार:-
एक लड़के का पिता मृत्यु को प्राप्त हो गया। उस समय वह 10-11 वर्ष का था। माता ने अपने इकलौते पुत्रा की परवरिश की। माता तथा पिता दोनों का प्यार माता जी ने दिया कि कहीं पुत्र को पिता का अभाव कष्ट न दे।
लड़का युवा होकर शराब का आदी हो गया तथा वैश्या गमन करने लगा।
माता से नित्य रूपये माँगे और आवारागर्दी में उड़ाए।

Father Day (Kabir)

एक दिन माता के पास पैसे नहीं थे। शराब के नशे में माता को पीटा तथा वैश्या के पास गया। उस दिन पैसे नहीं थे तो वैश्या ने कहा कि अपनी माता का दिल निकाल ला। उल्टा घर आया, माता बेहोश थी। छुरा मारकर माता का दिल निकालकर चल पड़ा। नशे में ठोकर लगी और गिर गया। माता के दिल से आवाज आई कि बेटा! तेरे को चोट तो नहीं लगी। नशे से बना शैतान वैश्या के पास माता का दिल लेकर पहुँचा तो वैश्या ने कहा कि जब तू अपनी माता का हितैषी नहीं है तो मेरा क्या होगा? किसी के बहकावे में आकर तू मुझे भी मार डालेगा।



Father Day (kabir)

मेरे को तो तेरे से पीछा छुड़ाना था कि तू अब निर्धन हो गया है, मेरे किस काम का। इसलिए यह शर्त रखी थी कि तू माता का दिल निकाल नहीं सकता क्योंकि वह तेरे को कभी किसी वस्तु के लिए मना नहीं करती थी।
हे शैतान! चला जा मेरी आँखों के सामने से। यह कहकर वैश्या ने उसे घर से बाहर धक्का देकर द्वार बंद कर लिया। वह शैतान घर आया। माता के शव पर विलाप करने लगा।

Father Day (Kabir is god)

कहा कि माता जी! हो सके तो भगवान के
दरबार में भी मुझे बचाना। आवाज आई कि बेटा! कुछ नहीं हुआ, बस तेरे को खुश देखना चाहती हूँ। उसी समय नगर के लोग आए। थाने में सूचना दी। उस अपराधी को राजा ने फाँसी की सजा दी।

राजा ने फाँसी चढ़ाने से पूर्व उसकी अंतिम इच्छा जानी तो उस लड़के ने कहा कि कुछ नागरिकों को बुलाया जाए, मैं अपनी कारगुजारी को सबके साथ साझा करना चाहता हूँ। नगर के व्यक्ति आए, उस लड़के ने अपना जुल्म कबूला और बताया कि मैंने उपरोक्त जुल्म किया।

Father Day 
(Supreme God kabir)



कबीर -
या तो माता भक्त जनै,या दाता या शूर।

या फिर रहै बांझडी,क्यों व्यर्थ गंवावै नूर।।


मेरी माँ की आत्मा अंतिम समय में भी मेरे सुखी रहने की कामना करती रही। मेरे को नशे ने शैतान बना दिया। मैंने वैश्या गमन करके समाज को दूषित किया।
आप लोग मेरे से नसीहत लेना। जो घोर पाप मैंने अपनी माता जी को परेशान करके किया, कोई मत करना।
माता जैसी हमदर्द संसार में पत्नी भी नहीं हो सकती, भले ही वह कितनी ही नेक हो। माता अपने बेटा-बेटी को इतना प्यार करती है कि सर्दियों में बच्चा पेशाब कर देता है तो माता स्वयं उसके पेशाब से भीगे ठण्डे वस्त्रा पर लेटती है, बच्चे के नीचे सूखा बिछौना कर देती है। यदि बच्चा भूख से रो रहा होता है तो खाना बीच में छोड़कर उसे पहले अपना दूध पिलाकर शांत करती है।

कबीर-

मात पिता मिल जाएंगे , तुझे लख चौरासी माई ।
सतगुरु सेवा बंदगी , ये फिर मिलन की नाही।।


सतगुरु रामपाल जी

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Sunday 14 June 2020

ओम् (ऊँ) नाम के जाप से मोक्ष सम्भव है

ओम् (ऊँ) नाम के जाप से मोक्ष सम्भव  है या नहीं
मनुष्य जीवन का मुख्य उदेश्य मोक्ष प्राप्ति है।
ये मनुष्य जीवन हमे भक्ति करने के लिए प्राप्त हुआ है। इस मनुष्य का एक मात्र उदेश्य मोक्ष की प्राप्ति है। सर्व पवित्र ग्रन्थों का सार येही है की एक पूर्ण संत से नाम दीक्षा प्राप्त कर के इस जनम मृत्यु के रोग से मुक्ति पानी चाहिए।
पूर्ण परमात्मा की वास्तविक भक्ति के लिए उसका वेदों, गीता तथा अन्य धर्म ग्रंथो में नाम की महिमा का बखान किया गया है और उसको प्राप्त करने लिए सच्चे सतगुरु से नाम उपदेश लेकर भक्ति करने से सभी रोग समाप्त हो जायेगा।
वास्तविक भक्ति के लिए कौनसा नाम है तो अवश्य जाने...

🕉️ ओम् (ऊँ) यह मन्त्र ब्रह्म का जाप है। ब्रह्मलोक तक की साधना का है। ॐ मंत्र के जाप से परम् शांति नहीं प्राप्त हो सकती न ही पूर्ण मोक्ष मिल सकता।

🕉️ अकेले ‘‘ब्रह्म’’ के नाम ओम् (ऊँ) से पूर्ण मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता। ‘‘ऊँ‘‘ नाम का जाप ब्रह्म का है।

🕉️ ऊँ‘‘ नाम का जाप ब्रह्म का है। इसकी साधना से ब्रह्म लोक प्राप्त होता है जिसके विषय में गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में कहा है कि ब्रह्म लोक में गए साधक भी पुनर्जन्म को प्राप्त होते हैं।
🕉️ गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में गीता ज्ञान दाता (ब्रह्म) कह रहा है कि -

ओम् इति एकाक्षरम् ब्रह्म, व्याहरन् माम् अनुस्मरन्,।
भावार्थ है कि श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रेतवत् प्रवेश करके ब्रह्म/काल कह रहा है कि मुझ ब्रह्म की साधना केवल एक ओम् नाम से मृत्यु पर्यन्त करने वाले साधक को मुझ से मिलने वाला लाभ प्राप्त होता है, अन्य कोई मन्त्र मेरी भक्ति का नहीं है।

🕉️ गीता अध्याय 8 श्लोक 5, 7 तथा 13 में गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने अपने विषय में साधना करने को बताया है कि जो मेरी साधना ॐ नाम का स्मरण अन्तिम स्वांस तक करता है, वह मुझे ही प्राप्त होगा।

🕉️ वास्तविक गायत्री मंत्र -
यजुर्वेद अध्याय 36 मंत्र 3 में कहीं भी ॐ नहीं लिखा है। ये अज्ञानी संतो की अपनी सोच से लगाया गया है। यह मंत्र पूर्ण परमात्मा के लिए है। जबकि ॐ काल ब्रह्म का है।

🕉️ श्री देवी महापुराण के सातवें स्कंध पृष्ठ 562-563 पर प्रमाण है कि श्री देवी जी ने राजा हिमालय को उपदेश देते हुए कहा है कि हे राजन! अन्य सब बातों को छोड़कर मेरी भक्ति भी छोड़कर केवल एक ऊँ नाम का जाप कर, “ब्रह्म” प्राप्ति का यही एक मंत्र है। भावार्थ है कि ब्रह्म साधना का केवल एक ओम् (ऊँ) नाम का जाप है, इससे ब्रह्म की प्राप्ति होती है और वह साधक ब्रह्म लोक में चला जाता है।

🕉️ गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में बताया है कि मुझ ब्रह्म का केवल एक ओम् (ऊँ) अक्षर है। उच्चारण करके स्मरण करता हुआ जो शरीर त्याग कर जाता है, वह परम गति को प्राप्त होता है। देवी पुराण में प्रमाण है कि ऊँ का जाप करके ब्रह्म लोक प्राप्त होता है। गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में स्पष्ट है कि ब्रह्म लोक में गए साधक का भी पुनर्जन्म होता है।

🕉️ गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में लिखा है।
ऊँ, तत्, सत्, इति, निर्देशः, ब्रह्मणः, त्रिविधः, स्मृतः
सचिदानन्द घन ब्रह्म की भक्ति का मन्त्र ‘‘ऊँ तत् सत्‘‘ है। “ऊँ‘‘ मन्त्र ब्रह्म का है। “तत्” यह सांकेतिक है जो अक्षर पुरूष का है। ‘‘सत्’’ मंत्र भी सांकेतिक मन्त्र है जो परम अक्षर ब्रह्म का है। इन तीनों मन्त्रों के जाप से वह परम गति प्राप्त होगी जो गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कही है कि जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते।

🕉️ गीता अध्याय 17 श्लोक 23 का भावार्थ है कि पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने का ॐ, तत् सत् यह मन्त्र जाप स्मरण करने का निर्देश है। इस नाम को तत्वदर्शी संत से प्राप्त करो।
वह तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हैं।

🕉️ योगियों ने वेदों के आधार पर ॐ (ब्रह्म का मंत्र) नाम से साधनाएँ की, परमात्मा तो मिला नहीं, सिद्धियाँ आ गई, स्वर्ग चले गए, महास्वर्ग गए, फिर पशु बन गए। इसलिए प्रभु को सभी ने निराकार मान रखा है कि वह दिखाई नहीं देता और वेदों में लिखा है कि भगवान आकार में है।

🕉️ पूर्ण मोक्ष पूर्ण गुरु से शास्त्रानुकूल भक्ति प्राप्त करके ही संभव है जो कि विश्व में वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी के अतिरिक्त किसी के पास नहीं है।

🕉️ पवित्र चारों वेद भी साक्षी हैं कि पूर्ण परमात्मा ही पूजा के योग्य है, उसका वास्तविक नाम कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है
तथा तीन मंत्र (ॐ, तत् सत्) के नाम का जाप करने से ही पूर्ण मोक्ष होता है। इस नाम को देने अधिकारी केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ही हैं।


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साधना tv साय 7:30pm से 8:30pm तक

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Saturday 13 June 2020

आओ जैन धर्म को जाने (Come know Jainism)

आओ जैन धर्म को जाने
(Come know Jainism)

दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म (Jain Dhram) को श्रमणों का धर्म कहा जाता है. जैन धर्म (Jain Dhram) का संस्थापक ऋषभ देव को माना जाता है, जो जैन धर्म  के पहले तीर्थंकर थे और भारत के चक्रवर्ती(Jain Dhram) सम्राट भरत के पिता थे.

वेदों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का उल्लेख मिलता है. माना जाता है कि वैदिक साहित्य में जिन यतियों और व्रात्यों का उल्लेख मिलता है वे ब्राह्मण परंपरा के न होकर श्रमण परंपरा के ही थे.
( श्री ऋषभदेव जी को  पूर्ण परमात्मा आकर मिले थे यह बड़ी नेक आत्मा के थे ।परमेश्वर ने इनको ज्ञान दिया जो साधना आप कर रहे हैं मोक्ष मार्ग नहीं है 
" ऋषभ देव के आईया वो कवि नाम में करतार "
कबीर साहिब ने बताया कि मैं वह कवि देव हूं जिसका जिक्र वेदों में है।)


आर्यों के काल में ऋषभदेव और अरिष्टनेमि को लेकर जैन धर्म की परंपरा का वर्णन भी मिलता है।

महाभारतकाल में इस धर्म के प्रमुख नेमिनाथ थे:

(1) जैन धर्म के संस्थापक और पहले तीर्थंकर थे- ऋषभदेव.

(2) जैन धर्म (Jain Dhram) के 23वें तीर्थंकर थे- पार्श्वनाथ

(3) पार्श्वनाथ काशी के इक्ष्वाकु वंशीय राजा अग्रसेन के पुत्र थे.

(4) पार्श्वनाथ को 30 साल की उम्र में वैराग्य उत्पन्न हुआ, जिस कारण वो गृह त्यागकर संयासी हो गए.

(5) पार्श्वनाथ के द्वारा दी गई शिक्षा थी- हिंसा न करना, चोरी नृ करना, हमेशा सच बोलना, संपत्ति न रखना.

(6) महावीर जैन धर्म  (Mahaveer Jain Dhram) के 24वें तीर्थंकर हैं.

(7) महावीर का जन्म 540 ई. पू. पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था.

(8) इनके पिता राजा सिद्धार्थ ज्ञातृक कुल के सरदार थे और माता त्रिशला लिच्छिवी राजा चेटक की बहन थीं.

(9) महावीर की पत्‍नी का नाम यशोदा और पुत्री का नाम अनोज्जा प्रियदर्शनी था.

(10) महावीर के बचपन का नाम वर्द्धमान था.

(11) महावीर का साधना काल 12 साल 6 महीने और 15 दिन का रहा. इस अवधि में भगवान ने तप, संयम और साम्यभाव की विलक्षण साधना की. इसी समय से महावीर जिन (विजेता), अर्हत (पूज्य), निर्ग्रंध (बंधनहीन) कहलाए.
यह सभी शास्त्रो के विरुद्ध साधना होने के कारण निष्फल मानी जाती है, ओर इससे जन्म मरण का रोग नही मिटता है।

(12) महावीर ने अपना उपदेश प्राकृत यानी अर्धमाग्धी में दिया. लेकिन पूर्ण नही  
अधूरा ज्ञान है।

(13) महावीर के पहले अनुयायी उनके दामाद जामिल बने.

(14) प्रथम जैन भिक्षुणी नरेश दधिवाहन की बेटी चंपा थी.

(15) महावीर ने अपने शिष्यों को 11 गणधरों में बांटा था.

(16) आर्य सुधर्मा अकेला ऐसा गंधर्व था जो महावीर की मृत्यु के बाद भी जीवित रहा.

(17) जैन धर्म दो भागों में विभाजित है- श्वेतांबर जो सफेद कपड़े पहनते हैं और दिगंबर जो नग्नावस्था में रहते हैं.

(18) भद्रबाहु के शिष्य दिगंबर और स्थूलभद्र के शिष्य श्वेतांबर कहलाए.

(19) दूसरी जैन सभा 512 में वल्लभी गुजरात में हुई.

(20) जैन धर्म के त्रिरत्न हैं- सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचरण.

(21) जैन धर्म में ईश्‍वर नहीं आत्मा की मान्यता है.

(22) महावीर पुनर्जन्म और कर्मवाद में विश्वास रखते थे.

(23) जैन धर्म ने अपने आध्यात्मिक विचारों को सांख्य दर्शन से ग्रहण किया.

(24) जैन धर्म को मानने वाले राजा थे- उदायिन, वंदराजा, चंद्रगुप्त मौर्य, कलिंग नरेश खारवेल, राजा अमोघवर्ष, चंदेल शासक.

(25) मौर्योत्तर युग में मथुरा जैन धर्म का प्रसिद्ध केंद्र था.

(26) जैन तीर्थंकरों की जीवनी कल्पसुत्र में है.


(27) जैन तीर्थंकरों में संस्कृत का अच्छा विद्वान नयनचंद्र था.

(28 ) मथुरा कला का संबंध जैन धर्म से है.

(29) 72 साल में महावीर की मृत्यु 468 ई. पू. में बिहार राज्य के पावापुरी में हुई थी.

(30) मल्लराजा सृस्तिपाल के राजप्रसाद में महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था.
वास्तविक धर्म का ज्ञान
कबीर परमेश्वर जी ने सभी धर्मों के लोगों को संदेश दिया कि सब मानव एक परमात्मा की संतान हैं।
अज्ञानता वश हम अलग-अलग जाति धर्मों में बंट गये।

जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।


हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, आपस में सब भाई-भाई।
आर्य जैनी और विश्‍नोई, एक प्रभु के बच्चे सोई।।

आज का समाज परमात्मा कबीर जी को एक सामान्य संत समझता है जबकि अपनी महिमा बताते हुए परमात्मा कबीर जी ने हमें बताया कि वही सृष्टि के रचनहार हैं और चारों युगों में आते हैं।
आज परमात्मा की सम्पूर्ण जानकारी संत रामपाल जी महाराज ही सबको बता रहे हैं।
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मानवता की कसौटी { मैं_उस_दोर_का_बेटा_हूं }

#मैं_उस_दोर_का_बेटा_हूं #जीवो_के_प्रति_दया_मेरे_भारत_की_संस्कृति हल खींचते समय यदि कोई बैल गोबर या मूत्र करने की स्थिति में होत...