Wednesday 24 June 2020

सच्चा रक्षक कौन हैं ?

सच्चा रक्षक कौन है ?

प्रकृति का जन्मदाता व जीवाआत्मा हमेशा बनती व बिगड़ती रहती है। यह परिवर्तनशील है, लेकिन दवाल यह उठता है यह भी किसी के द्वारा संचालित हो रही है। इसको भी कोई बड़ी शक्ति नियंत्रण कर रही है। {Kabir}

आखिर वह कौनसी शक्ति यह सवाल सभी के जहन में उठता होगा।
वैज्ञानिक बताते है कि यह रासायनिक क्रियाओं के आपसी तालमेल के बनते बिगड़ते रासायनिक परिवर्तन के कारण होता है, लेकिन वास्तविकता में यह भी अंत मे आकर विफल हो जाते है। इसका ओर छोर तक नही जाया जा सकता है। वास्तव में कोई है ऐसी महान शक्ति जो इसको समान बनाए रखती हैं। जब प्राकृतिक आपदाएं, भूकम्प, महामारी आदि से कौन रक्षक बनकर सभी की रक्षा करता है।
दूसरे पहलू लोकमान्यता के आधार पर बताया जाता है कि दैविक शक्तियां इनकी रक्षा करते है। तो कौनसी वह शक्तियां है जो जीवात्माओं की रक्षा करती है।

इसको जानने के लिए सभी धर्म के सदग्रंथो के आधार कर पता चलता है और धर्मगुरुओं में माध्यम से वेद, गीता, पुराण, कुरान, बाईबल में प्रमाणित करके सभी धर्म गुरुओं ने बताया कि जीवात्मा अविनाशी है इसका क़भी अंत नही होता है, सिर्फ शरीर नाशवान हैं।
लेकिन सभी लोकवेद के आधार पर कहा सुना करते थे कि ऐसी महान शक्ति है जो सभी का संचालन करती हैं।
लेकिन वह वास्तव में कौन है जो सभी की रक्षा करती है।
उसकी सत्यता के लिए धर्म ग्रंथो का सहारा लेना होगा, लेकिन सभी अपना धर्म को श्रेस्ट करने के लगी हुए है ओर वास्तिविकता को जानने के लिए तत्वदर्शी संत इसका राज खोलकर बताते है।

- वही बताते है कि हमारी रक्षा करने वाला कोन है ?
- उसको प्राप्त किस विधि से किया जा सकता है?
- पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने से क्या लाभ प्राप्त होते है ?
kabir )

इन सबकी जानकारी कोई बिरला तत्वदर्शी संत बताता है कि -

सभी धर्म ग्रंथ बताते है कि वह महान शक्ति एक राजा के समान है, सदृश्य है, देखने योग्य है।

श्री गीता जी में प्रमाण है कि :-

💠गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि वास्तव में अविनाशी परमात्मा तो इन दोनों (क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष) से दूसरा ही है वही तीनों लोकों में प्रवेश करके सर्व का धारण पोषण करता है वही वास्तव में परमात्मा कहा जाता है

💠गीता अध्याय 3 श्लोक 14 से 15 में भी स्पष्ट है कि ब्रह्म काल की उत्पति परम अक्षर पुरूष से हुई वही परम अक्षर ब्रह्म ही यज्ञों में पूज्य है।

💠 वास्तविक भक्ति विधि के लिए गीता ज्ञान दाता प्रभु (ब्रह्म) किसी तत्वदर्शी की खोज करने को कहता है (गीता अध्याय 4 श्लोक 34) इस से सिद्ध है गीता ज्ञान दाता (ब्रह्म) द्वारा बताई गई भक्ति विधि पूर्ण नहीं है।

💠गीता अध्याय 8 श्लोक 5 तथा 7 में अपनी भक्ति करने को कहा है तथा युद्ध भी कर, निःसंदेह मुझे प्राप्त होगा, परंतु जन्म-मृत्यु दोनों की बनी रहेगी। अपनी भक्ति का मंत्र अध्याय 8 के श्लोक 13 में बताया है कि मुझ ब्रह्म की भक्ति का केवल एक ओम अक्षर है। इस नाम का जाप अंतिम श्वांस तक करने वाले को इससे मिलने वाली गति यानि ब्रह्मलोक प्राप्त होता है। 

💠गीता अध्याय 8 के श्लोक 16 में स्पष्ट किया है कि ब्रह्मलोक में गए साधक भी लौटकर संसार में जन्म लेते हैं। युद्ध जैसे भयंकर कर्म भी करने पड़ेंगे। जिस कारण से काल ब्रह्म के पुजारियों को न तो शांति मिलेगी, न सनातन परम धाम।

💠अध्याय 11 श्लोक 47 में पवित्र गीता जी को बोलने वाला प्रभु काल कह रहा है कि ‘हे अर्जुन यह मेरा वास्तविक काल रूप है'।

💠गीता अध्याय 8 श्लोक 17
अक्षर पुरूष यानि परब्रह्म का जो एक दिन है उसको एक हजार युग की अवधि वाला और रात्रि को भी एक हजार युग तक की अवधि वाली तत्व से जानते हैं वे तत्वदर्शी संत परब्रह्म के दिन-रात्रि के तत्व को जानने वाले हैं।

💠गीता अध्याय 8 श्लोक 20 से 22 में किसी अन्य पूर्ण परमात्मा के विषय में कहा है जो वास्तव में अविनाशी है।

💠गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में उस तत्वदर्शी संत की पहचान बताई है कि वह संसार रूपी वृक्ष के प्रत्येक भाग का ज्ञान कराएगा। उसी से पूछो। 

💠गीता अध्याय 15 के श्लोक 4 में कहा है कि उस तत्वदर्शी संत के मिल जाने के पश्चात् उस परमेश्वर के परम पद की खोज करनी चाहिए अर्थात् उस तत्वदर्शी संत के बताए अनुसार साधना करनी चाहिए जिससे पूर्ण मोक्ष(अनादि मोक्ष) प्राप्त होता है। गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि मैं भी उसी की शरण में हूँ।

💠गीता अध्याय 15 श्लोक 1
गीता का ज्ञान सुनाने वाले प्रभु ने कहा कि ऊपर को पूर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वर रूपी जड़ वाला नीचे को शाखा वाला अविनाशी विस्त्तारित, पीपल का वृक्ष रूप संसार है जिसके
छोटे-छोटे हिस्से या टहनियाँ पत्ते कहे हैं उस संसार रूप वृक्ष को जो सर्वांगों सहित जानता है वह पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी है।

💠गीता अध्याय 07 श्लोक 12 में गीता ज्ञान दाता ब्रह्म कह रहा है कि तीनों देवताओं द्वारा जो भी उत्पति, स्थिति तथा संहार हो रहा है इसका निमित्त मैं ही हूँ।
परन्तु मैं इनसे दूर हूँ। कारण है कि काल को शापवश एक लाख प्राणियों का आहार करना होता है। इसलिए मुख्य कारण अपने आप को कहा है तथा काल भगवान तीनों देवताओं से भिन्न ब्रह्म
लोक में रहता है तथा इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में रहता है। इसलिए कहा है कि मैं उनमें तथा वे मुझ में नहीं हैं।

💠गीता अध्याय 16 श्लोक 23
जो साधक शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी इच्छा से
मनमाना आचरण करता है वह न सिद्धि को प्राप्त होता है न उसे कोई सुख प्राप्त होता है, न उसकी गति यानि मुक्ति होती है अर्थात् शास्त्र के विपरित भक्ति करना व्यर्थ है। 

💠गीता जी के अध्याय 18 के श्लोक 64 तथा अध्याय 15 के श्लोक 4 में स्पष्ट है कि स्वयं काल ब्रह्म कह रहा है कि हे अर्जुन! मेरा उपास्य देव (इष्ट) भी वही परमात्मा (पूर्ण ब्रह्म) ही है तथा मैं भी उसी की शरण हूँ तथा वही सनातन स्थान (सतलोक) ही मेरा परम धाम है। क्योंकि ब्रह्म भी वहीं (सतलोक) से निष्कासित है।

💠गीता जी के अध्याय 18 के श्लोक 66 में गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य परम अक्षर ब्रह्म की शरण में जाने को कहा है।

💠गीता अध्याय 17 श्लोक 23-28 में ओम मंत्र जो क्षर पुरूष का है तथा तत मंत्र जो सांकेतिक है, यह अक्षर पुरूष की साधना का है तथा सत मंत्र भी सांकेतिक है। यह परम अक्षर पुरूष की साधना का है। इन तीनों मंत्रों के जाप से पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है। 

फजाईले जिक्र में आयत नं. 1, 2, 3, 6 तथा 7 में स्पष्ट प्रमाण है कि तुम कबीर अल्लाह कि बड़ाई बयान करो। वह कबीर अल्लाह तमाम पोसीदा और जाहिर चीजों को जानने वाला है और वह कबीर है और आलीशान रूत्बे वाला है।

पवित्र कुरान शरीफ सुरत-फुर्कानि नं. 25 आयत नं. 58 में
“अिबादिही खबीरा(कबीरा) कहा गया है।
कबीर अल्लाह ही इबादत के योग्य है।
सुरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 में लिखा है कि कबीर परमात्मा ने छः दिन में सृष्टी की रचना की तथा सातवें दिन तख्त पर जा विराजा।

पवित्र अथर्ववेद काण्ड नं.4 अनुवाक नं. 1 मंत्र 7
इस मंत्र में यह भी स्पष्ट कर दिया कि उस परमेश्वर का नाम कविर्देव है।

सभी शास्त्रो व संतो की वाणियों में प्रमाण है। कबीर साहेब ही परमात्मा हैं।

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