Thursday 8 October 2020

मानवता की कसौटी { मैं_उस_दोर_का_बेटा_हूं }

#मैं_उस_दोर_का_बेटा_हूं
#जीवो_के_प्रति_दया_मेरे_भारत_की_संस्कृति

हल खींचते समय यदि कोई बैल गोबर या मूत्र करने की स्थिति में होता था तो किसान कुछ देर के लिए हल चलाना बन्द करके बैल के मल-मूत्र त्यागने तक खड़ा रहता था ताकि बैल आराम से यह नित्यकर्म कर सके,


यह आम चलन था। हमनें  (ईश्वर वैदिक) यह सारी बातें बचपन में स्वयं अपनी आंखों से देख हुई हैं।  जीवों के प्रति यह गहरी संवेदना उन महान पुरखों में जन्मजात होती थी जिन्हें आजकल हम अशिक्षित कहते हैं । यह सब अभी 25-30 वर्ष पूर्व तक होता रहा ।

उस जमाने का देसी घी यदि आजकल के हिसाब से मूल्य लगाएं तो इतना शुद्ध होता था कि  2 हजार रुपये किलो तक बिक सकता है । उस देसी घी को किसान विशेष कार्य के दिनों में हर दो दिन बाद आधा-आधा किलो घी अपने बैलों को पिलाता था।

टटीरी नामक पक्षी अपने अंडे खुले खेत की मिट्टी पर देती है और उनको सेती है। हल चलाते समय यदि सामने कहीं कोई टटीरी चिल्लाती मिलती थी तो किसान इशारा  समझ जाता था और उस अंडे वाली जगह को बिना हल जोते खाली छोड़ देता था । उस जमाने में आधुनिक शिक्षा नहीं थी ।

सब आस्तिक थे । दोपहर को किसान जब आराम करने का समय होता तो सबसे पहले बैलों को पानी पिलाकर चारा डालता और फिर खुद भोजन करता था । यह एक सामान्य नियम था ।

बैल जब बूढ़ा हो जाता था तो उसे कसाइयों को बेचना शर्मनाक सामाजिक अपराध की श्रेणी में आता था । बूढा बैल कई सालों तक खाली बैठा चारा खाता रहता था,  मरने तक उसकी सेवा होती थी । उस जमाने के तथाकथित अशिक्षित किसान का मानवीय तर्क था कि इतने सालों तक इसकी माँ का दूध पिया और इसकी कमाई खाई है , अब बुढापे में इसे कैसे छोड़ दें , कैसे कसाइयों को दे दें काट खाने के लिए ??? जब बैल मर जाता तो किसान फफक-फफक कर रोता था और उन भरी दुपहरियों को याद करता था जब उसका यह वफादार मित्र हर कष्ट में उसके साथ होता था । माता-पिता को रोता देख किसान के बच्चे भी अपने बुड्ढे बैल की मौत पर रोने लगते थे । पूरा जीवन काल तक बैल अपने स्वामी किसान की मूक भाषा को समझता था कि वह क्या कहना चाह रहा है ।


वह पुराना भारत इतना शिक्षित और धनाढ्य था कि अपने जीवन व्यवहार में ही जीवन रस खोज लेता था । वह करोड़ों वर्ष पुरानी संस्कृति वाला वैभवशाली भारत था ,
" मानव जीवन का महत्व किसी को पता नही है। आज हम जीवन की भागदौड में खुद को भूलते जा रही है, ओर एक दिन ऐसा आयेगा की इस चकाचौंध सी भागदौड़ मैं ख़ुद को खत्म कर देगे। "


सभी प्रकार के जीवों ने जन्म लिया और मर गये। यह प्रकिया तो हर एक यौनी में प्राप्त होती है और और इसी के चलते एक मानव तन के रूप में प्राप्त होता है।
इसकी वास्तविक जानकारी एक तत्व दर्शी संत दिया करते है, ओर वह तत्व ज्ञाता एक समय मे एक ही होता है।

#अपनी कलम से लिखी हुई लोचनात्मक रचना


👉 वर्तमान में वह तत्त्वदर्शी संत कौन है ?

📌जो स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत का निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं।
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Wednesday 5 August 2020

कांवड़ यात्रा का महत्व और इतिहास

कांवड़ यात्रा का महत्व और इतिहास

कांवड़ यात्रा: मनोकामना पूर्ति के लिए गंगाजल से करते हैं शिव का अभिषेक

अपनी मनोकामना लेकर शिवभक्त नंगे पाव काशी, ऋषिकेश, हरिद्वार, गोमुख, देवघर, बैद्यनाथ आदि जगह से शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए पवित्र गंगाजल लेकर आते है। घर आकर शिवरात्रि के दिन अपने घर के पास वाले शिव मन्दिर में जाकर शिवलिंग का अभिषेक उसी गंगा जल से करते है। इसे ही कांवड़ यात्रा कहते है। 

कांवड़ यात्रा के पीछे कई पौराणिक कहानियां हैं. लेकिन पुराणों के मुताबिक, सबसे ज्यादा प्रचलित कहानी श्रावण के महीने में समुद्र मंथन से संबंधित है. समुद्र मंथन के दौरान महासागर से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया. ... यहीं से कावड़ यात्रा की परंपरा की भी शुरुआत हो गई.
सावन का महीना भगवान शिवजी का महीना माना जाता है। इस महीने में भक्त भगवान शिवजी को खुश करने के लिए अलग-अलग तरीकों से उनकी पूजा करते हैं। इन्हीं तरीकों में से एक है कांवड़ से पवित्र जल लाकर भगवान शिव को अर्पित करना। इसी के चलत सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ के भक्त केसरिया रंग में रंगे कांधे पर कांवड़ रखकर मीलों की यात्रा कर कांवड़ के जल से भगवान शिव का अभिषेक करने पहुंचते हैं। पूरे श्रावण मास में कांवडिय़ों की धूम रहती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कांवड़ यात्रा सावन के माह में ही क्यों निकाली जाती है। और क्या है कांवड़ का महत्व।
कावड़ यात्रा किसी भी जलस्रोत से किसी भी शिवधाम तक की जाती है।

कावड़ की कुछ प्रमुख यात्राएं यह हैं 
* नर्मदा से महाकाल तक 

* गंगाजी से नीलकंठ महादेव तक 

* गंगा से बैजनाथ धाम (बिहार) तक 

* गोदावरी से त्र्यम्बक तक 


कांवड यात्रा का इतिहास

पुराणो में बताया जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले विष का सेवन करने भगवान शिव का पूरा शरीर जलने लगा था। जिसे शीतल करने के लिए सभी देवताओं मे उनके ऊपर जल चढ़ाया था। जिसके बाद से यह परंपरा शुरू हो गई।

शिवजी को किसने बचाया -

यह है पौराणिक मान्यता

सावन के महीने में कांवड़ लाने के पीछे अनेक पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। जो कांवड़ के महत्व और इतिहास को दर्शाती हैं। मुख्य रूप से यह समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव द्वारा सेवन करने से जुड़ी हुई है।


*  माना जाता है कि समुद्र मंथन इसी माह में हुआ था और  समुद्र मंथन के दौरान जो विष निकला था, संसार को बचाने के लिए भगवान शिव ने इस विष का सेवन कर लिया था। विष का सेवन करने के कारण भगवान शिव का शरीर 

जलने लगा। तब भगवान शिव के शरीर को जलता देख देवताओं ने उन पर जल अर्पित करना शुरू कर दिया। जल अर्पित करने के कारण भगवान शंकर के  शरीर को ठंडक मिली और उन्हें विष से राहत मिली।


* कांवड़ के बारे में यह भी माना जाता है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने कांवड़ से गंगा का पवित्र जल लाकर भगवान शंकर पर चढ़ाया था। तभी से शिवजी पर सावन के महीने में जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है।

*  कुछ लोगों का मानना है कि सबसे पहले श्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा शुरू की थी। श्रवण कुमार के माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की थी। अपने माता-पिता की इच्छा पूरी करने के लिए श्रवण कुमार ने उन्हें कांवड़ में बैठा कर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया था।


*  कुछ विद्वानों का कहना है कि समुंद मंथन सेे निकले विष को पीने के कारण भगवान शिव का गला नीला हो गया था, जिसके कारण वे नीलकंठ कहलाए। विष के कारण उनके शरीर पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़ गए थे। इन नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति दिलाने के लिए शिव भक्त रावण ने उनकी पूजा-पाठ की और कांवड़ में जल भरकर शिवमंदिर में चढ़ाया जिससे वे नकारात्मक प्रभाव से मुक्त हुए और तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।


इन्हीं मान्यताओं के चलते श्रावण माह में भगवान शंकर की पूजा अर्चना का विशेष महत्व है और भगवान शंकर को खुश करने कांवडि़ए पवित्र नदियों का जल भगवान शिव को अर्पित कर उनका अभिषेक करते हैं और उनकी विशेष आराधना की जाती है।


सामाजिक महत्वसंपादित करें

नदियों से दूर-दराज रहने वाले लोगों को पानी का संचय करके रखना पड़ता है। हालांकि मानसून काफी हद तक इनकी आवश्यकता की पूर्ति कर देता है तदापि कई बार मानसून का भी भरोसा नहीं होता है। ऐसे में बारहमासी नदियों का ही आसरा होता है। और इसके लिए सदियों से मानव अपने इंजीनियरिंग कौशल से नदियों का पूर्ण उपयोग करने की चेश्टा करता हुआ कभी बांध तो कभी नहर तो कभी अन्य साधनों से नदियों के पानी को जल विहिन क्षेत्रों में ले जाने की कोशिश करता रहा है। लेकिन आबादी का दबाव और प्रकृति के साथ मानवीय व्यभिचार की बदौलत जल संकट बड़े रूप में उभर कर आया है।


धार्मिक संदर्भ में कहें तो इंसान ने अपनी स्वार्थपरक नियति से शिव को रूष्ट किया है। कांवड यात्रा का आयोजन अति सुन्दर बात है। लेकिन शिव को प्रसन्न करने के लिए इन आयोजन में भागीदारी करने वालों को इसकी महत्ता भी समझनी होगी। प्रतीकात्मक तौर पर कांवड यात्रा का संदेश इतना भर है कि आप जीवनदायिनी नदियों के लोटे भर जल से जिस भगवान शिव का अभिषेक कर रहे हें वे शिव वास्तव में सृष्टि का ही दूसरा रूप हैं। धार्मिक आस्थाओं के साथ सामाजिक सरोकारों से रची कांवड यात्रा वास्तव में जल संचय की अहमियत को उजागर करती है। कांवड यात्रा की सार्थकता तभी है जब आप जल बचाकर और नदियों के पानी का उपयोग कर अपने खेत खलिहानों की सिंचाई करें और अपने निवास स्थान पर पशु पक्षियों और पर्यावरण को पानी उपलब्ध कराएं तो प्रकृति की तरह उदार शिव सहज ही प्रसन्न होंगे।

इन्हीं मान्यताओं के चलते श्रावण माह में भगवान शंकर की पूजा अर्चना का विशेष महत्व है और भगवान शंकर को खुश करने कांवडि़ए पवित्र नदियों का जल भगवान शिव को अर्पित कर उनका अभिषेक करते हैं और उनकी विशेष आराधना की जाती है।

रजगुण - ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव है और ये तीनों नाशवान हैं।

भगवान शिव शंकर (महादेव) को संहार करने का विभाग काल ने दिया क्योंकि इनके पिता निरंजन को एक लाख मानव शरीर धारी जीव प्रतिदिन खाने पड़ते हैं।

"कांवड़ यात्रा" के विषय मे संत रामपाल जी महाराज के विचार | Kanwad Yatra | Sant Rampal Ji Maharaj-o


शिव जी अविनाशी व पूर्ण परमात्मा नहीं हैं।

=> कविर्देव हैं जो सतलोक के मालिक हैं। ब्रह्मा-विष्णु-शिव जी नाशवान परमात्मा हैं। महाप्रलय में ये सब तथा इनके लोक समाप्त हो जाएंगे।

=> शिव जी अंतर्यामी नहीं हैं। 

=> क्योंकि वे भस्मागिरी की दुर्भावना नहीं जान पाए थे। 

=> शिव जी अजरो अमर नहीं हैं क्योंकि वे भस्मासुर के हाथ में भस्मकंडा देखकर भयभीत हो कर जीवन रक्षा को भागे थे।

ॐ नमः शिवाय पंचाक्षरी मंत्र नहीं है - श्री शिव पुराण ।

ॐ नमः शिवाय से मुक्ति संभव नही। शिव जी से लाभ पाने का मंत्र और विधि केवल तत्वदर्शी संत ही बता सकते हैं।


यह बात बिल्कुल ठीक है कि सबका मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/गोड/ राम/परमेश्वर एक ही है जिसका वास्तविक नाम कबीर है और वह अपने सतलोक/सतधाम/सच्चखण्ड में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है। लेकिन अब हिन्दु तो कहते हैं कि हमारा राम बड़ा है, मुसलिम कहते हैं कि हमारा अल्लाह बड़ा है, ईसाई कहते हैं कि हमारा ईसामसीह बड़ा और सिक्ख कहते हैं कि हमारे गुरु नानक साहेब जी बड़े हैं। ऐसे कहते हैं जैसे चार नादान बच्चे कहते हैं कि यह मेरा पापा, दूसरा कहेगा यह मेरा पापा है तेरा नहीं है, तीसरा कहेगा यह तो मेरा पिता जी है जो सबसे बड़ा है और फिर चैथा कहेगा कि अरे नहीं नादानों! यह मेरा डैडी है, तुम्हारा नहीं है। जबकि उन चारों का पिता वही एक ही है। इन्हीं नादान बच्चों की तरह आज हमारा मानव समाज लड़ रहा है।

‘‘कोई कहै हमारा राम बड़ा है, कोई कहे खुदाई रे।

कोई कहे हमारा ईसामसीह बड़ा, ये बाटा रहे लगाई रे।।‘‘

जबकि हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रों में उस एक प्रभु/मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/ राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाई है कि वह एक मालिक/प्रभु कबीर साहेब है जो सतलोक में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है।

ये मनुष्य जीवन हमे पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब की भक्ति करने के लिए प्राप्त हुआ है। इस मनुष्य का एक मात्र उदेश्य मोक्ष की प्राप्ति है। सर्व पवित्र ग्रन्थों का सार येही है की एक पूर्ण संत से नाम दीक्षा प्राप्त कर के इस जनम मृत्यु के रोग से मुक्ति पानी चाहिए।

अवश्य जानिए | संत रामपाल जी


1. ब्रह्मा विष्णु और शिव के माता पिता कौन हैं?

अब तक सभी ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव को अविनाशी ही जाना है जो कि पीढी दर पीढी सुनी सुनायी जानकारी के आधार पर पवित्र ग्रंथों को ठीक से ना समझ पाने के कारण हुआ है । संत रामपाल जी ने श्रीमद्भगवद् गीता और श्रीमद् देवी भागवत पुराण (दुर्गा पुराण) में प्रमाण दिखाकर सिद्ध किया है कि माँ दुर्गा,  ब्रह्मा, विष्णु और शिव / शंकर की माँ हैं। और ज्योति निरंजन / क्षर पुरुष / काल  उनके पिता हैं।

सृष्टि रचना में परमात्मा कबीर जी  ने जो ज्ञान दिया है उसमें स्पष्ट रूप से ब्रह्मा, विष्णु और शिव के जन्म का विस्तार से वर्णन किया गया है जिसका प्रमाण कबीर सागर में उपलब्ध है। संत रामपाल जी ने उस ज्ञान  को भी प्रमाण के साथ स्पष्ट किया है। जिसकी सम्पूर्ण जानकारी के लिए पाठक सृष्टी रचना पढ़कर अधिक जान सकते हैं।

2. शेरांवाली माता दुर्गा (अष्टांगी) का पति कौन है?

इसमें कोई संदेह नहीं है कि देवी दुर्गा ब्रह्मा, विष्णु और शिव की माँ हैं। लेकिन इसके बाद भी ये रहस्य बना रहा कि माँ दुर्गा का पति कौन है? संत रामपाल जी ने इस रहस्य को भी दुर्गा पुराण के प्रमाण से उजागर किया है कि क्षर पुरुष (काल) माँ दुर्गा के पति हैं। अधिक जानकारी हासिल करने के लिए कृपया श्रीमद देवी भागवत पुराण पढ़ें।

3. हम को जन्म देने व मारने में किस प्रभु का स्वार्थ है?

सभी आत्माएं इस पृथ्वीलोक में फंस गई हैं, जो कि काल के 21 ब्रह्मांडों में एक है। जहा मनुष्य लगातार जन्म और

जैसा कि भगवान काल को प्रतिदिन 1 मृत्यु के चक्र में हैं। पाठकों को इन 21 ब्रह्मांडों की स्थिति को समझने के लिए सृष्टि रचना को जानने की आवश्यकता है ।

लाख मानव शरीरधारी जीव  के आहार का श्राप मिला है , जिस कारण वह नहीं चाहता कि कोई भी आत्मा इस  ब्रह्मांड से बच जाए क्योंकि हम उसके भोजन हैं। इसलिए यह काल भगवन यही चहता है कि आत्माएं मोक्ष प्राप्त न कर सके और अपने निवास स्थान सतलोक ना जा सके । यह सुनिश्चित करने के लिए, आत्मा को अपने जाल में उलझाए रखने के लिए, काल ने अपने ब्रह्मांड में कई जाल बनाए हैं। आगे पढ़ें कौन है काल?? इस काल को अन्य धर्मों में शैतान के रूप में संबोधित किया गया है।

4. हम सभी देवी देवताओं की इतनी भक्ति करते हैं फिर भी दुखी क्यूँ हैं?

केवल परमपिता परमेश्वर कबीर साहेब जी की पूजा ही हमारे पापों को नष्ट कर सकती है। अन्यथा व्यक्ति पिछले जन्मों में किए गए पाप कर्मों का परिणाम ही भुगतता रहता है। जिस कारण व्यथित रहता है। इसका सीधा सा कारण यह है कि सभी लोग गलत साधना (शस्त्रविरुद्ध भक्ति/ मनमानी भक्ति) कर रहे हैं, जिस कारण वो भगवान से मिलने वाले लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। जिससे उनके सभी प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं। इसलिए वे किसी भी प्रकार की पूजा करने के बावजूद भी दुखी ही रहते हैं।

5. ब्रह्मा विष्णु और शिव किस की भक्ति करते हैं?

इस प्रश्न का उत्तर यह है कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव किसी देवी दुर्गा की उपासना करते हैं। जबकी श्रीमद् देवी भागवत में देवी दुर्गा उन्हे खुद की पुजा करने से मना करते हुए 'ऊं' शब्द का जाप करके काल की ही पूजा करने को संकेत दे रही हैं। इस बारे में सम्पूर्ण सार समझने के लिए  देवी भागवत पुराण पढ़ें।

6. पूर्ण संत की क्या पहचान है? एवं पूर्ण मोक्ष कैसे मिलेगा?

हमारे सभी धार्मिक ग्रंथ पूर्ण संत की अनगिनत पहचान के बारे में बताते हैं। जिसमे से पूर्ण संत के मुख्य लक्षण उसे सर्व वेद-शास्त्रों का ज्ञाता बताया गया है। दूसरे वह मन-कर्म-वचन से यानि सच्ची श्रद्धा से केवल एक परमात्मा समर्थ की भक्ति स्वयं करता है तथा अपने अनुयाईयों से करवाता है ।

7. परमात्मा साकार है या निराकार?

भगवान साकार है , मानव रूप में है। सभी पवित्र ग्रंथों में  इस बात के अनगिनत प्रमाण मौजूद हैं ।  कि ईश्वर साकार है। जो भी संत, महंत ये कहते हैं कि ईश्वर निराकार है, उन्हें ज्ञान नहीं हैं, वो पवित्र शास्त्र की कोई जानकारी नही रखते।

परमात्मा सशरीर साकार है इस बारे में प्रमाण देखें ।

वेद

यजुर्वेद अध्याय 5, मंत्र 1, 6, 8, यजुर्वेद अध्याय 1, मंत्र 15, यजुर्वेद अध्याय 7 मंत्र 39, ऋग्वेद मण्डल 1, सूक्त 31, मंत्र 17, ऋग्वेद मण्डल 9, सूक्त 86, मंत्र 26, 27, ऋग्वेद मण्डल 9, सूक्त 82, मंत्र 1 - 3 (प्रभु राजा के समान दर्शनिये है)परमात्मा साकार है व सहशरीर है - यजुर्वेद

परमात्मा साकार है व सहशरीर है :

कुरान

सूरत फुर्कनी 25 आयत 52 से 59 मे प्रमाण अल्लाह साकार है उसका नाम कबीर है।

बाइबिल

उत्पत्ति ग्रंथ में प्रमाण है कि  ईश्वर ने 6 दिन में सृष्टि रची और परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, नर और नारी करके मनुष्यों की सृष्टी की। इससे सिद्ध होता है कि ईश्वर साकार है।

गुरु ग्रंथ साहेब

गुरु ग्रंथ साहेब पेज नम्बर 721, महला 1, "सिरी" मसला, पेज 25 पर भी प्रमाण मौजूद है ।

8. किसी भी गुरु की शरण में जाने से मोक्ष संभव है या नहीं?

नहीं, सिर्फ किसी गुरु की शरण में जाने से मुक्ति संभव नहीं है। मोक्ष या 'मोक्ष' केवल एक सच्चे / पूर्ण गुरु 'तत्त्वदर्शी संत' की शरण में जाने से संभव है। केवल एक सच्चा गुरु ही सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान और "सच्चा मंत्र" प्रदान कर सकता है जिसके द्वारा मोक्ष संभव है। श्री मदभगवदगीता के अध्याय 4 के, श्लोक 34 में "तत्त्वदर्शी संत" की शरण मे जाने के लिए कहा गया है। इसी तरह, श्रीमदभगवदगीता के ही अध्याय 18 श्लोक 62 से 66 मे गीता ज्ञान दाता अन्य भगवान की शरण में जाने का संदेश देता है।

अधिक जानकारी के लिये भगवद गीता से और पढ़ें।

9. तीर्थ व्रत तर्पण एवं श्राद्ध निकालने से कोई लाभ है या नहीं? (गीता अनुसार)

श्रीमद्भगवद् गीता जी के अनुसार तीर्थ यात्रा पर जाने का कोई लाभ नहीं है क्योंकि यह पूजा एक मनमाना आचरण है व शास्त्रविरुध साधना है।  उपवास रखना भी एक बेकार प्रथा है जिसका कोई लाभ नहीं है। श्रीमद्भगवद् गीता व्रत रखने के सख्त खिलाफ हैं। इसी तरह श्राद्ध करना भी मनमानी पूजा है। श्रीमद्भगवद् गीता भी श्राद्ध करने के विरुद्ध है।

10. श्री कृष्ण जी काल नहीं थे। फिर गीता वाला काल कौन था ?

पवित्र गीता जी को बोलने वाला काल (ब्रह्म-ज्योति निरंजन) है, न कि श्री कृष्ण जी। क्योंकि श्री कृष्ण जी ने महाभारत से पहले कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ तथा बाद में कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ। श्री कृष्ण जी 'सत्वगुणी' हैं जबकि काल दयालु नहीं है। काल की एक हजार भुजाऐं हैं। श्री कृष्ण जी श्री विष्णु जी के अवतार थे, जिनकी चार भुजाऐं हैं। यह काल ही हैं जिन्होंने भगवद्गीता का ज्ञान दिया। कौन है काल इसके बारे में विस्तार से पढ़ें। श्री कृष्ण जी के बारे में भी पढ़ें कि वे सर्वोच्च देव हैं या नहीं।

11. कौन तथा कैसा है, कहाँ रहता है, कैसे मिलता है किसने देखा है पूर्ण परमात्मा?

परमात्मा कबीर साहिब `सर्वोच्च’ हैं। वह मानव सदृश सशरीर रूप मे हैं । वह सतलोक / सचखंड / सतधाम / अनन्त स्थान में रहते हैं । पूर्ण संत से दीक्षा प्राप्त करने के बाद ही उनकी सतभक्ति प्राप्त हो सकती है। वह स्वयं अपनी चाहने वाली पवित्र आत्माओं से मिले और उन्हें अपना सच्चा ज्ञान दिया। सभी प्रमाणो के साथ विस्तृत जानकारी के लिये पढ़ें ज्ञान गंगा।

12. समाधि अभ्यास, राम, हरे क्रिष्ण, हरि ॐ, व पाँच नामों तथा वाहेगुरु आदि आदि नामों के जाप से सुख एवं मुक्ति संभव है या नहीं?

इसका सीधा उत्तर है 'नहीं'। 'राम राम', `राधे राधे’, 'हरे कृष्ण' 'हरि ओम' आदि जैसे मंत्रों का ध्यान या पाठ करने से कोई भी लाभ प्राप्त नहीं कर सकता है क्योंकि वे सभी  मनमाने आचरण हैं और इस तरह बेकार हैं। इनका उल्लेख कहीं  भी भगवद गीता या वेदों में नहीं  मिलता है। इसी तरह गीता किसी भी ध्यान साधना (मेडिटेशन) को उत्तर नहीं मानती है। पूर्ण संत तो सिर्फ संत रामपाल जी महाराज जी हैं जिनके पास मोक्ष देने वाला दो अक्षर का मंत्र है।

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Wednesday 8 July 2020

नाग पूजा कितनी लाभ दायक ?

नाग पूजा कितनी लाभ दायक ?

नागपंचमी का महत्व (Nag panchami Ka Mahatva): शास्त्रों के अनुसार नाग को मां लक्ष्मी का रक्षक माना गया है साथ ही इसे धन का भी रक्षक माना जाता है। 
नागपंचमी के दिन श्रीया, नाग और ब्रह्म अर्थात शिवलिंग स्वरुप की आराधना की जाती है। मान्यता है कि इनकी आराधना से मनुष्य की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा से मां लक्ष्मी का आर्शीवाद भी प्राप्त होता है।
सावन का सोमवार और नाग पंचमी का दुर्लभ संयोग, इस शुभ मुहूर्त में करें पूजा : श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागों की पूजा के संदर्भ में एक कथा हैं, जिसमें नागों की पूजा के कारण का उल्लेख मिलता है। वेद और पुराणों में नागों का उद्गम महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू से माना जाता है। नागों का मूल स्थान पाताल लोक है।
नाग देवता हैं पूज्य :
नाग देवता भारतीय संस्कृति में देवरूप में स्वीकार किये गये हैं। देश के पर्वतीय प्रदेशों में नागपूजा बहुतायत से होती है। यहाँ नागदेवता अत्यन्त पूज्य माने जाते हैं। हमारे देश के प्रत्येक ग्राम- नगर में ग्राम देवता और लोक देवता के रूप में नाग देवताओं के पूजास्थल हैं।
भारतीय संस्कृति में सायं-प्रात: भगवत्स्मरण के साथ अनन्त तथा वासुकि आदि पवित्र नागों का नामस्मरण भी किया जाता है, जिनमें नागविष और भय से रक्षा होती है तथा सर्वत्र विजय होती है।

देवों की सेवा में समर्पित हैं नाग :
पुराणों में यक्ष, किन्नर और गन्धर्वों के वर्णन के साथ-साथ नागों का भी वर्णन मिलता है। भगवान विष्णु की शय्या की शोभा नागराज शेष बढ़ाते हैं। भगवान शिव के अलंकरण में वासुकी की महत्वपूर्ण भूमिका है। 
योगसिद्धि के लिए जो कुण्डलिनी शक्ति जागृत की जाती है, उसको सर्पिणी कहा जाता है। पुराणों में भगवान सूर्य के रथ में द्वादश नागों का उल्लेख मिलता है, जो क्रमश: प्रत्येक मास में उनके रथ के वाहक बनते हैं। इस प्रकार अन्य देवताओं ने भी नागों को धारण किया है।

नाग पूजा के लाभ : धर्म ग्रंथों में कई प्रमुख नागों का उल्लेख मिलता है। ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है कि नागों के शाप के कारण यानी पूर्वजन्म में सांप को मारने या पिता या पितरों को नाराज करने से कुंडली में नागदेवता कालसर्प योग बनाते हैं। नागपंचमी के दिन नाग देवता की पूजा से कालसर्प और सर्पदोष के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि सर्प योनी में गए हुए पितरों को भी नाग पंचमी पूजा से मुक्ति मिलती है। भविष्य पुराण में कहा गया है कि नागपंचमी के दिन नाग देवता की पूजा से परिवार में सर्प भय नहीं रहता है।
नागपंचमी पर पूजन के दौरान बरतें ये सावधानियां-
अगर आप नाग पंचमी पर नाग देवता की कृपा पाना चाहते हैं तो आपको ये सावधानियां जरूर बरतनी चाहिए.
- बिना शिव जी की पूजा किए कभी भी नागों की पूजा न करें.
- नागों की स्वतंत्र पूजा न करें, उनकी पूजा शिव जी के आभूषण के रूप में ही करें.
- नागपंचमी के दिन न तो भूमि खोदें और न ही साग काटें
अन्य :-
भारत देश कृषिप्रधान देश था और है। सांप खेतों का रक्षण करता है, इसलिए उसे क्षेत्रपाल कहते हैं। जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले तत्व हैं, उनका नाश करके सांप हमारे खेतों को हराभरा रखता है।

साँप हमें कई मूक संदेश भी देता है। साँप के गुण देखने की हमारे पास गुणग्राही और शुभग्राही दृष्टि होनी चाहिए। भगवान दत्तात्रय की ऐसी शुभ दृष्टि थी, इसलिए ही उन्हें प्रत्येक वस्तु से कुछ न कुछ सीख मिली।

साँप सामान्यतया किसी को अकारण नहीं काटता। उसे परेशान करने वाले को या छेड़ने वालों को ही वह डंसता है। साँप भी प्रभु का सर्जन है, वह यदि नुकसान किए बिना सरलता से जाता हो, या निरुपद्रवी बनकर जीता हो तो उसे मारने का हमें कोई अधिकार नहीं है। जब हम उसके प्राण लेने का प्रयत्न करते हैं, तब अपने प्राण बचाने के लिए या अपना जीवन टिकाने के लिए यदि वह हमें डँस दे तो उसे दुष्ट कैसे कहा जा सकता है? हमारे प्राण लेने वालों के प्राण लेने का प्रयत्न क्या हम नहीं करते?

साँप को सुगंध बहुत ही भाती है। चंपा के पौधे को लिपटकर वह रहता है या तो चंदन के वृक्ष पर वह निवास करता है। केवड़े के वन में भी वह फिरता रहता है। उसे सुगंध प्रिय लगती है, इसलिए भारतीय संस्कृति को वह प्रिय है। प्रत्येक मानव को जीवन में सद्गुणों की सुगंध आती है, सुविचारों की सुवास आती है, वह सुवास हमें प्रिय होनी चाहिए।

हम जानते हैं कि साँप बिना कारण किसी को नहीं काटता। वर्षों परिश्रम संचित शक्ति यानी जहर वह किसी को यों ही काटकर व्यर्थ खो देना नहीं चाहता। हम भी जीवन में कुछ तप करेंगे तो उससे हमें भी शक्ति पैदा होगी। यह शक्ति किसी पर गुस्सा करने में, निर्बलों को हैरान करने में या अशक्तों को दुःख देने में व्यर्थ न कर उस शक्ति को हमारा विकास करने में, दूसरे असमर्थों को समर्थ बनाने में, निर्बलों को सबल बनाने में खर्च करें, यही अपेक्षित है।

नाग पूजा तत्वज्ञान से जाने तो इसका भक्ति में  लाभ लाभरहित है।
गीता अध्याय 16 श्लोक 23, 24 में कहा गया है कि शास्त्र विरुद्ध साधना से कोई लाभ नहीं होता।
पवित्र यादगारें आदरणीय हैं, परन्तु आत्म कल्याण तो
केवल पवित्र गीता जी व पवित्रा वेदों में वर्णित तथा परमेश्वर कबीर जी द्वारा दिए तत्वज्ञान के अनुसार भक्ति साधना करने मात्र से ही सम्भव है, अन्यथा शास्त्र विरुद्ध होने से मानव जीवन व्यर्थ हो जाएगा।
हिन्दू धर्म के गुरुजन तथा अनुयाई गीता शास्त्र में वर्जित साधना कर रहे हैं जो शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाना आचरण होने से परमात्मा की भक्ति से मिलने वाले लाभ से वंचित रहते हैं।
मनमाना आचरण करने से हम कभी सुखी नहीं हो सकते। यही हमारी सबसे बड़ी भूल है कि हम शास्त्रविरुद्ध साधना करते हैं। क्योंकि हमें हमारे धर्मगुरुओं ने सद्ग्रन्थों की सच्चाई नहीं बताई और हमने कभी कोशिश भी नहीं की जानने की।
अब हमारे पास मौका है हम सच्चाई को जान सकते हैं।
पूरे विश्व में संत रामपाल जी महाराज जी ही एकमात्र संत हैं जो शास्त्रो का ज्ञान करवाते हैं। तो अब बिना किसी विलम्ब के सच्चाई को जानें, परखें और मनमाना आचरण छोडें।

प्रतिदिन शाम 7:30 से 8:30 तक साधना tv पर संत रामपाल जी महाराज जी के मंगल प्रवचन देखें और सच्चाई से परिचित होकर शास्त्रनुकूल साधना करें।
धन्यवाद।

Wednesday 24 June 2020

सच्चा रक्षक कौन हैं ?

सच्चा रक्षक कौन है ?

प्रकृति का जन्मदाता व जीवाआत्मा हमेशा बनती व बिगड़ती रहती है। यह परिवर्तनशील है, लेकिन दवाल यह उठता है यह भी किसी के द्वारा संचालित हो रही है। इसको भी कोई बड़ी शक्ति नियंत्रण कर रही है। {Kabir}

आखिर वह कौनसी शक्ति यह सवाल सभी के जहन में उठता होगा।
वैज्ञानिक बताते है कि यह रासायनिक क्रियाओं के आपसी तालमेल के बनते बिगड़ते रासायनिक परिवर्तन के कारण होता है, लेकिन वास्तविकता में यह भी अंत मे आकर विफल हो जाते है। इसका ओर छोर तक नही जाया जा सकता है। वास्तव में कोई है ऐसी महान शक्ति जो इसको समान बनाए रखती हैं। जब प्राकृतिक आपदाएं, भूकम्प, महामारी आदि से कौन रक्षक बनकर सभी की रक्षा करता है।
दूसरे पहलू लोकमान्यता के आधार पर बताया जाता है कि दैविक शक्तियां इनकी रक्षा करते है। तो कौनसी वह शक्तियां है जो जीवात्माओं की रक्षा करती है।

इसको जानने के लिए सभी धर्म के सदग्रंथो के आधार कर पता चलता है और धर्मगुरुओं में माध्यम से वेद, गीता, पुराण, कुरान, बाईबल में प्रमाणित करके सभी धर्म गुरुओं ने बताया कि जीवात्मा अविनाशी है इसका क़भी अंत नही होता है, सिर्फ शरीर नाशवान हैं।
लेकिन सभी लोकवेद के आधार पर कहा सुना करते थे कि ऐसी महान शक्ति है जो सभी का संचालन करती हैं।
लेकिन वह वास्तव में कौन है जो सभी की रक्षा करती है।
उसकी सत्यता के लिए धर्म ग्रंथो का सहारा लेना होगा, लेकिन सभी अपना धर्म को श्रेस्ट करने के लगी हुए है ओर वास्तिविकता को जानने के लिए तत्वदर्शी संत इसका राज खोलकर बताते है।

- वही बताते है कि हमारी रक्षा करने वाला कोन है ?
- उसको प्राप्त किस विधि से किया जा सकता है?
- पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने से क्या लाभ प्राप्त होते है ?
kabir )

इन सबकी जानकारी कोई बिरला तत्वदर्शी संत बताता है कि -

सभी धर्म ग्रंथ बताते है कि वह महान शक्ति एक राजा के समान है, सदृश्य है, देखने योग्य है।

श्री गीता जी में प्रमाण है कि :-

💠गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि वास्तव में अविनाशी परमात्मा तो इन दोनों (क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष) से दूसरा ही है वही तीनों लोकों में प्रवेश करके सर्व का धारण पोषण करता है वही वास्तव में परमात्मा कहा जाता है

💠गीता अध्याय 3 श्लोक 14 से 15 में भी स्पष्ट है कि ब्रह्म काल की उत्पति परम अक्षर पुरूष से हुई वही परम अक्षर ब्रह्म ही यज्ञों में पूज्य है।

💠 वास्तविक भक्ति विधि के लिए गीता ज्ञान दाता प्रभु (ब्रह्म) किसी तत्वदर्शी की खोज करने को कहता है (गीता अध्याय 4 श्लोक 34) इस से सिद्ध है गीता ज्ञान दाता (ब्रह्म) द्वारा बताई गई भक्ति विधि पूर्ण नहीं है।

💠गीता अध्याय 8 श्लोक 5 तथा 7 में अपनी भक्ति करने को कहा है तथा युद्ध भी कर, निःसंदेह मुझे प्राप्त होगा, परंतु जन्म-मृत्यु दोनों की बनी रहेगी। अपनी भक्ति का मंत्र अध्याय 8 के श्लोक 13 में बताया है कि मुझ ब्रह्म की भक्ति का केवल एक ओम अक्षर है। इस नाम का जाप अंतिम श्वांस तक करने वाले को इससे मिलने वाली गति यानि ब्रह्मलोक प्राप्त होता है। 

💠गीता अध्याय 8 के श्लोक 16 में स्पष्ट किया है कि ब्रह्मलोक में गए साधक भी लौटकर संसार में जन्म लेते हैं। युद्ध जैसे भयंकर कर्म भी करने पड़ेंगे। जिस कारण से काल ब्रह्म के पुजारियों को न तो शांति मिलेगी, न सनातन परम धाम।

💠अध्याय 11 श्लोक 47 में पवित्र गीता जी को बोलने वाला प्रभु काल कह रहा है कि ‘हे अर्जुन यह मेरा वास्तविक काल रूप है'।

💠गीता अध्याय 8 श्लोक 17
अक्षर पुरूष यानि परब्रह्म का जो एक दिन है उसको एक हजार युग की अवधि वाला और रात्रि को भी एक हजार युग तक की अवधि वाली तत्व से जानते हैं वे तत्वदर्शी संत परब्रह्म के दिन-रात्रि के तत्व को जानने वाले हैं।

💠गीता अध्याय 8 श्लोक 20 से 22 में किसी अन्य पूर्ण परमात्मा के विषय में कहा है जो वास्तव में अविनाशी है।

💠गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में उस तत्वदर्शी संत की पहचान बताई है कि वह संसार रूपी वृक्ष के प्रत्येक भाग का ज्ञान कराएगा। उसी से पूछो। 

💠गीता अध्याय 15 के श्लोक 4 में कहा है कि उस तत्वदर्शी संत के मिल जाने के पश्चात् उस परमेश्वर के परम पद की खोज करनी चाहिए अर्थात् उस तत्वदर्शी संत के बताए अनुसार साधना करनी चाहिए जिससे पूर्ण मोक्ष(अनादि मोक्ष) प्राप्त होता है। गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि मैं भी उसी की शरण में हूँ।

💠गीता अध्याय 15 श्लोक 1
गीता का ज्ञान सुनाने वाले प्रभु ने कहा कि ऊपर को पूर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वर रूपी जड़ वाला नीचे को शाखा वाला अविनाशी विस्त्तारित, पीपल का वृक्ष रूप संसार है जिसके
छोटे-छोटे हिस्से या टहनियाँ पत्ते कहे हैं उस संसार रूप वृक्ष को जो सर्वांगों सहित जानता है वह पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी है।

💠गीता अध्याय 07 श्लोक 12 में गीता ज्ञान दाता ब्रह्म कह रहा है कि तीनों देवताओं द्वारा जो भी उत्पति, स्थिति तथा संहार हो रहा है इसका निमित्त मैं ही हूँ।
परन्तु मैं इनसे दूर हूँ। कारण है कि काल को शापवश एक लाख प्राणियों का आहार करना होता है। इसलिए मुख्य कारण अपने आप को कहा है तथा काल भगवान तीनों देवताओं से भिन्न ब्रह्म
लोक में रहता है तथा इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में रहता है। इसलिए कहा है कि मैं उनमें तथा वे मुझ में नहीं हैं।

💠गीता अध्याय 16 श्लोक 23
जो साधक शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी इच्छा से
मनमाना आचरण करता है वह न सिद्धि को प्राप्त होता है न उसे कोई सुख प्राप्त होता है, न उसकी गति यानि मुक्ति होती है अर्थात् शास्त्र के विपरित भक्ति करना व्यर्थ है। 

💠गीता जी के अध्याय 18 के श्लोक 64 तथा अध्याय 15 के श्लोक 4 में स्पष्ट है कि स्वयं काल ब्रह्म कह रहा है कि हे अर्जुन! मेरा उपास्य देव (इष्ट) भी वही परमात्मा (पूर्ण ब्रह्म) ही है तथा मैं भी उसी की शरण हूँ तथा वही सनातन स्थान (सतलोक) ही मेरा परम धाम है। क्योंकि ब्रह्म भी वहीं (सतलोक) से निष्कासित है।

💠गीता जी के अध्याय 18 के श्लोक 66 में गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य परम अक्षर ब्रह्म की शरण में जाने को कहा है।

💠गीता अध्याय 17 श्लोक 23-28 में ओम मंत्र जो क्षर पुरूष का है तथा तत मंत्र जो सांकेतिक है, यह अक्षर पुरूष की साधना का है तथा सत मंत्र भी सांकेतिक है। यह परम अक्षर पुरूष की साधना का है। इन तीनों मंत्रों के जाप से पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है। 

फजाईले जिक्र में आयत नं. 1, 2, 3, 6 तथा 7 में स्पष्ट प्रमाण है कि तुम कबीर अल्लाह कि बड़ाई बयान करो। वह कबीर अल्लाह तमाम पोसीदा और जाहिर चीजों को जानने वाला है और वह कबीर है और आलीशान रूत्बे वाला है।

पवित्र कुरान शरीफ सुरत-फुर्कानि नं. 25 आयत नं. 58 में
“अिबादिही खबीरा(कबीरा) कहा गया है।
कबीर अल्लाह ही इबादत के योग्य है।
सुरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 में लिखा है कि कबीर परमात्मा ने छः दिन में सृष्टी की रचना की तथा सातवें दिन तख्त पर जा विराजा।

पवित्र अथर्ववेद काण्ड नं.4 अनुवाक नं. 1 मंत्र 7
इस मंत्र में यह भी स्पष्ट कर दिया कि उस परमेश्वर का नाम कविर्देव है।

सभी शास्त्रो व संतो की वाणियों में प्रमाण है। कबीर साहेब ही परमात्मा हैं।

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Sunday 21 June 2020

सबसे बड़ा उपकार मात-पिता की सेवा ( Father Day )

माता-पिता की सेवा व आदर करना परम कर्तव्य  ( #जीने_की_राह )

Father Day ( Kabir)
प्रत्येक माता-पिता की तमन्ना होती है कि मेरी संतान योग्य बने। समाज में बदनामी न ले। अच्छे चरित्र वाली हो, आज्ञाकारी हो। वृद्धावस्था में हमारी सेवा करे। हमारी बहु हमारे कहने में चलने वाली आए। समाज में हमारी इज्जत रखे।
Father Day (Kabir)

वृद्धावस्था में हमारी सेवा करे। प्यार से व्यवहार करे।
सत्ययुग, त्रोता, द्वापर तक यह मर्यादा चरम पर रही। सब सुखी जीवन जीते थे। 
#कलयुग में कुछ समय तक तो ठीक रहा, परंतु वर्तमान में स्थिति विपरीत ही है।
इसे सुधारने का उद्देश्य लेखक (तत्वदर्शी_संत_रामपाल_जी_महाराज) रखता है। आशा भी करता हूँ कि भगवान की कृपा से ज्ञान के प्रकाश से सब संभव हो जाता है, हो भी रहा है और होगा, यह मेरी आत्मा मानती है।

Father Day (kabir)

-: माता का संतान के प्रति प्यार:-
एक लड़के का पिता मृत्यु को प्राप्त हो गया। उस समय वह 10-11 वर्ष का था। माता ने अपने इकलौते पुत्रा की परवरिश की। माता तथा पिता दोनों का प्यार माता जी ने दिया कि कहीं पुत्र को पिता का अभाव कष्ट न दे।
लड़का युवा होकर शराब का आदी हो गया तथा वैश्या गमन करने लगा।
माता से नित्य रूपये माँगे और आवारागर्दी में उड़ाए।

Father Day (Kabir)

एक दिन माता के पास पैसे नहीं थे। शराब के नशे में माता को पीटा तथा वैश्या के पास गया। उस दिन पैसे नहीं थे तो वैश्या ने कहा कि अपनी माता का दिल निकाल ला। उल्टा घर आया, माता बेहोश थी। छुरा मारकर माता का दिल निकालकर चल पड़ा। नशे में ठोकर लगी और गिर गया। माता के दिल से आवाज आई कि बेटा! तेरे को चोट तो नहीं लगी। नशे से बना शैतान वैश्या के पास माता का दिल लेकर पहुँचा तो वैश्या ने कहा कि जब तू अपनी माता का हितैषी नहीं है तो मेरा क्या होगा? किसी के बहकावे में आकर तू मुझे भी मार डालेगा।



Father Day (kabir)

मेरे को तो तेरे से पीछा छुड़ाना था कि तू अब निर्धन हो गया है, मेरे किस काम का। इसलिए यह शर्त रखी थी कि तू माता का दिल निकाल नहीं सकता क्योंकि वह तेरे को कभी किसी वस्तु के लिए मना नहीं करती थी।
हे शैतान! चला जा मेरी आँखों के सामने से। यह कहकर वैश्या ने उसे घर से बाहर धक्का देकर द्वार बंद कर लिया। वह शैतान घर आया। माता के शव पर विलाप करने लगा।

Father Day (Kabir is god)

कहा कि माता जी! हो सके तो भगवान के
दरबार में भी मुझे बचाना। आवाज आई कि बेटा! कुछ नहीं हुआ, बस तेरे को खुश देखना चाहती हूँ। उसी समय नगर के लोग आए। थाने में सूचना दी। उस अपराधी को राजा ने फाँसी की सजा दी।

राजा ने फाँसी चढ़ाने से पूर्व उसकी अंतिम इच्छा जानी तो उस लड़के ने कहा कि कुछ नागरिकों को बुलाया जाए, मैं अपनी कारगुजारी को सबके साथ साझा करना चाहता हूँ। नगर के व्यक्ति आए, उस लड़के ने अपना जुल्म कबूला और बताया कि मैंने उपरोक्त जुल्म किया।

Father Day 
(Supreme God kabir)



कबीर -
या तो माता भक्त जनै,या दाता या शूर।

या फिर रहै बांझडी,क्यों व्यर्थ गंवावै नूर।।


मेरी माँ की आत्मा अंतिम समय में भी मेरे सुखी रहने की कामना करती रही। मेरे को नशे ने शैतान बना दिया। मैंने वैश्या गमन करके समाज को दूषित किया।
आप लोग मेरे से नसीहत लेना। जो घोर पाप मैंने अपनी माता जी को परेशान करके किया, कोई मत करना।
माता जैसी हमदर्द संसार में पत्नी भी नहीं हो सकती, भले ही वह कितनी ही नेक हो। माता अपने बेटा-बेटी को इतना प्यार करती है कि सर्दियों में बच्चा पेशाब कर देता है तो माता स्वयं उसके पेशाब से भीगे ठण्डे वस्त्रा पर लेटती है, बच्चे के नीचे सूखा बिछौना कर देती है। यदि बच्चा भूख से रो रहा होता है तो खाना बीच में छोड़कर उसे पहले अपना दूध पिलाकर शांत करती है।

कबीर-

मात पिता मिल जाएंगे , तुझे लख चौरासी माई ।
सतगुरु सेवा बंदगी , ये फिर मिलन की नाही।।


सतगुरु रामपाल जी

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मानवता की कसौटी { मैं_उस_दोर_का_बेटा_हूं }

#मैं_उस_दोर_का_बेटा_हूं #जीवो_के_प्रति_दया_मेरे_भारत_की_संस्कृति हल खींचते समय यदि कोई बैल गोबर या मूत्र करने की स्थिति में होत...