Wednesday 5 August 2020

कांवड़ यात्रा का महत्व और इतिहास

कांवड़ यात्रा का महत्व और इतिहास

कांवड़ यात्रा: मनोकामना पूर्ति के लिए गंगाजल से करते हैं शिव का अभिषेक

अपनी मनोकामना लेकर शिवभक्त नंगे पाव काशी, ऋषिकेश, हरिद्वार, गोमुख, देवघर, बैद्यनाथ आदि जगह से शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए पवित्र गंगाजल लेकर आते है। घर आकर शिवरात्रि के दिन अपने घर के पास वाले शिव मन्दिर में जाकर शिवलिंग का अभिषेक उसी गंगा जल से करते है। इसे ही कांवड़ यात्रा कहते है। 

कांवड़ यात्रा के पीछे कई पौराणिक कहानियां हैं. लेकिन पुराणों के मुताबिक, सबसे ज्यादा प्रचलित कहानी श्रावण के महीने में समुद्र मंथन से संबंधित है. समुद्र मंथन के दौरान महासागर से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया. ... यहीं से कावड़ यात्रा की परंपरा की भी शुरुआत हो गई.
सावन का महीना भगवान शिवजी का महीना माना जाता है। इस महीने में भक्त भगवान शिवजी को खुश करने के लिए अलग-अलग तरीकों से उनकी पूजा करते हैं। इन्हीं तरीकों में से एक है कांवड़ से पवित्र जल लाकर भगवान शिव को अर्पित करना। इसी के चलत सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ के भक्त केसरिया रंग में रंगे कांधे पर कांवड़ रखकर मीलों की यात्रा कर कांवड़ के जल से भगवान शिव का अभिषेक करने पहुंचते हैं। पूरे श्रावण मास में कांवडिय़ों की धूम रहती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कांवड़ यात्रा सावन के माह में ही क्यों निकाली जाती है। और क्या है कांवड़ का महत्व।
कावड़ यात्रा किसी भी जलस्रोत से किसी भी शिवधाम तक की जाती है।

कावड़ की कुछ प्रमुख यात्राएं यह हैं 
* नर्मदा से महाकाल तक 

* गंगाजी से नीलकंठ महादेव तक 

* गंगा से बैजनाथ धाम (बिहार) तक 

* गोदावरी से त्र्यम्बक तक 


कांवड यात्रा का इतिहास

पुराणो में बताया जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले विष का सेवन करने भगवान शिव का पूरा शरीर जलने लगा था। जिसे शीतल करने के लिए सभी देवताओं मे उनके ऊपर जल चढ़ाया था। जिसके बाद से यह परंपरा शुरू हो गई।

शिवजी को किसने बचाया -

यह है पौराणिक मान्यता

सावन के महीने में कांवड़ लाने के पीछे अनेक पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। जो कांवड़ के महत्व और इतिहास को दर्शाती हैं। मुख्य रूप से यह समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव द्वारा सेवन करने से जुड़ी हुई है।


*  माना जाता है कि समुद्र मंथन इसी माह में हुआ था और  समुद्र मंथन के दौरान जो विष निकला था, संसार को बचाने के लिए भगवान शिव ने इस विष का सेवन कर लिया था। विष का सेवन करने के कारण भगवान शिव का शरीर 

जलने लगा। तब भगवान शिव के शरीर को जलता देख देवताओं ने उन पर जल अर्पित करना शुरू कर दिया। जल अर्पित करने के कारण भगवान शंकर के  शरीर को ठंडक मिली और उन्हें विष से राहत मिली।


* कांवड़ के बारे में यह भी माना जाता है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने कांवड़ से गंगा का पवित्र जल लाकर भगवान शंकर पर चढ़ाया था। तभी से शिवजी पर सावन के महीने में जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है।

*  कुछ लोगों का मानना है कि सबसे पहले श्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा शुरू की थी। श्रवण कुमार के माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की थी। अपने माता-पिता की इच्छा पूरी करने के लिए श्रवण कुमार ने उन्हें कांवड़ में बैठा कर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया था।


*  कुछ विद्वानों का कहना है कि समुंद मंथन सेे निकले विष को पीने के कारण भगवान शिव का गला नीला हो गया था, जिसके कारण वे नीलकंठ कहलाए। विष के कारण उनके शरीर पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़ गए थे। इन नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति दिलाने के लिए शिव भक्त रावण ने उनकी पूजा-पाठ की और कांवड़ में जल भरकर शिवमंदिर में चढ़ाया जिससे वे नकारात्मक प्रभाव से मुक्त हुए और तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।


इन्हीं मान्यताओं के चलते श्रावण माह में भगवान शंकर की पूजा अर्चना का विशेष महत्व है और भगवान शंकर को खुश करने कांवडि़ए पवित्र नदियों का जल भगवान शिव को अर्पित कर उनका अभिषेक करते हैं और उनकी विशेष आराधना की जाती है।


सामाजिक महत्वसंपादित करें

नदियों से दूर-दराज रहने वाले लोगों को पानी का संचय करके रखना पड़ता है। हालांकि मानसून काफी हद तक इनकी आवश्यकता की पूर्ति कर देता है तदापि कई बार मानसून का भी भरोसा नहीं होता है। ऐसे में बारहमासी नदियों का ही आसरा होता है। और इसके लिए सदियों से मानव अपने इंजीनियरिंग कौशल से नदियों का पूर्ण उपयोग करने की चेश्टा करता हुआ कभी बांध तो कभी नहर तो कभी अन्य साधनों से नदियों के पानी को जल विहिन क्षेत्रों में ले जाने की कोशिश करता रहा है। लेकिन आबादी का दबाव और प्रकृति के साथ मानवीय व्यभिचार की बदौलत जल संकट बड़े रूप में उभर कर आया है।


धार्मिक संदर्भ में कहें तो इंसान ने अपनी स्वार्थपरक नियति से शिव को रूष्ट किया है। कांवड यात्रा का आयोजन अति सुन्दर बात है। लेकिन शिव को प्रसन्न करने के लिए इन आयोजन में भागीदारी करने वालों को इसकी महत्ता भी समझनी होगी। प्रतीकात्मक तौर पर कांवड यात्रा का संदेश इतना भर है कि आप जीवनदायिनी नदियों के लोटे भर जल से जिस भगवान शिव का अभिषेक कर रहे हें वे शिव वास्तव में सृष्टि का ही दूसरा रूप हैं। धार्मिक आस्थाओं के साथ सामाजिक सरोकारों से रची कांवड यात्रा वास्तव में जल संचय की अहमियत को उजागर करती है। कांवड यात्रा की सार्थकता तभी है जब आप जल बचाकर और नदियों के पानी का उपयोग कर अपने खेत खलिहानों की सिंचाई करें और अपने निवास स्थान पर पशु पक्षियों और पर्यावरण को पानी उपलब्ध कराएं तो प्रकृति की तरह उदार शिव सहज ही प्रसन्न होंगे।

इन्हीं मान्यताओं के चलते श्रावण माह में भगवान शंकर की पूजा अर्चना का विशेष महत्व है और भगवान शंकर को खुश करने कांवडि़ए पवित्र नदियों का जल भगवान शिव को अर्पित कर उनका अभिषेक करते हैं और उनकी विशेष आराधना की जाती है।

रजगुण - ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव है और ये तीनों नाशवान हैं।

भगवान शिव शंकर (महादेव) को संहार करने का विभाग काल ने दिया क्योंकि इनके पिता निरंजन को एक लाख मानव शरीर धारी जीव प्रतिदिन खाने पड़ते हैं।

"कांवड़ यात्रा" के विषय मे संत रामपाल जी महाराज के विचार | Kanwad Yatra | Sant Rampal Ji Maharaj-o


शिव जी अविनाशी व पूर्ण परमात्मा नहीं हैं।

=> कविर्देव हैं जो सतलोक के मालिक हैं। ब्रह्मा-विष्णु-शिव जी नाशवान परमात्मा हैं। महाप्रलय में ये सब तथा इनके लोक समाप्त हो जाएंगे।

=> शिव जी अंतर्यामी नहीं हैं। 

=> क्योंकि वे भस्मागिरी की दुर्भावना नहीं जान पाए थे। 

=> शिव जी अजरो अमर नहीं हैं क्योंकि वे भस्मासुर के हाथ में भस्मकंडा देखकर भयभीत हो कर जीवन रक्षा को भागे थे।

ॐ नमः शिवाय पंचाक्षरी मंत्र नहीं है - श्री शिव पुराण ।

ॐ नमः शिवाय से मुक्ति संभव नही। शिव जी से लाभ पाने का मंत्र और विधि केवल तत्वदर्शी संत ही बता सकते हैं।


यह बात बिल्कुल ठीक है कि सबका मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/गोड/ राम/परमेश्वर एक ही है जिसका वास्तविक नाम कबीर है और वह अपने सतलोक/सतधाम/सच्चखण्ड में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है। लेकिन अब हिन्दु तो कहते हैं कि हमारा राम बड़ा है, मुसलिम कहते हैं कि हमारा अल्लाह बड़ा है, ईसाई कहते हैं कि हमारा ईसामसीह बड़ा और सिक्ख कहते हैं कि हमारे गुरु नानक साहेब जी बड़े हैं। ऐसे कहते हैं जैसे चार नादान बच्चे कहते हैं कि यह मेरा पापा, दूसरा कहेगा यह मेरा पापा है तेरा नहीं है, तीसरा कहेगा यह तो मेरा पिता जी है जो सबसे बड़ा है और फिर चैथा कहेगा कि अरे नहीं नादानों! यह मेरा डैडी है, तुम्हारा नहीं है। जबकि उन चारों का पिता वही एक ही है। इन्हीं नादान बच्चों की तरह आज हमारा मानव समाज लड़ रहा है।

‘‘कोई कहै हमारा राम बड़ा है, कोई कहे खुदाई रे।

कोई कहे हमारा ईसामसीह बड़ा, ये बाटा रहे लगाई रे।।‘‘

जबकि हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रों में उस एक प्रभु/मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/ राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाई है कि वह एक मालिक/प्रभु कबीर साहेब है जो सतलोक में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है।

ये मनुष्य जीवन हमे पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब की भक्ति करने के लिए प्राप्त हुआ है। इस मनुष्य का एक मात्र उदेश्य मोक्ष की प्राप्ति है। सर्व पवित्र ग्रन्थों का सार येही है की एक पूर्ण संत से नाम दीक्षा प्राप्त कर के इस जनम मृत्यु के रोग से मुक्ति पानी चाहिए।

अवश्य जानिए | संत रामपाल जी


1. ब्रह्मा विष्णु और शिव के माता पिता कौन हैं?

अब तक सभी ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव को अविनाशी ही जाना है जो कि पीढी दर पीढी सुनी सुनायी जानकारी के आधार पर पवित्र ग्रंथों को ठीक से ना समझ पाने के कारण हुआ है । संत रामपाल जी ने श्रीमद्भगवद् गीता और श्रीमद् देवी भागवत पुराण (दुर्गा पुराण) में प्रमाण दिखाकर सिद्ध किया है कि माँ दुर्गा,  ब्रह्मा, विष्णु और शिव / शंकर की माँ हैं। और ज्योति निरंजन / क्षर पुरुष / काल  उनके पिता हैं।

सृष्टि रचना में परमात्मा कबीर जी  ने जो ज्ञान दिया है उसमें स्पष्ट रूप से ब्रह्मा, विष्णु और शिव के जन्म का विस्तार से वर्णन किया गया है जिसका प्रमाण कबीर सागर में उपलब्ध है। संत रामपाल जी ने उस ज्ञान  को भी प्रमाण के साथ स्पष्ट किया है। जिसकी सम्पूर्ण जानकारी के लिए पाठक सृष्टी रचना पढ़कर अधिक जान सकते हैं।

2. शेरांवाली माता दुर्गा (अष्टांगी) का पति कौन है?

इसमें कोई संदेह नहीं है कि देवी दुर्गा ब्रह्मा, विष्णु और शिव की माँ हैं। लेकिन इसके बाद भी ये रहस्य बना रहा कि माँ दुर्गा का पति कौन है? संत रामपाल जी ने इस रहस्य को भी दुर्गा पुराण के प्रमाण से उजागर किया है कि क्षर पुरुष (काल) माँ दुर्गा के पति हैं। अधिक जानकारी हासिल करने के लिए कृपया श्रीमद देवी भागवत पुराण पढ़ें।

3. हम को जन्म देने व मारने में किस प्रभु का स्वार्थ है?

सभी आत्माएं इस पृथ्वीलोक में फंस गई हैं, जो कि काल के 21 ब्रह्मांडों में एक है। जहा मनुष्य लगातार जन्म और

जैसा कि भगवान काल को प्रतिदिन 1 मृत्यु के चक्र में हैं। पाठकों को इन 21 ब्रह्मांडों की स्थिति को समझने के लिए सृष्टि रचना को जानने की आवश्यकता है ।

लाख मानव शरीरधारी जीव  के आहार का श्राप मिला है , जिस कारण वह नहीं चाहता कि कोई भी आत्मा इस  ब्रह्मांड से बच जाए क्योंकि हम उसके भोजन हैं। इसलिए यह काल भगवन यही चहता है कि आत्माएं मोक्ष प्राप्त न कर सके और अपने निवास स्थान सतलोक ना जा सके । यह सुनिश्चित करने के लिए, आत्मा को अपने जाल में उलझाए रखने के लिए, काल ने अपने ब्रह्मांड में कई जाल बनाए हैं। आगे पढ़ें कौन है काल?? इस काल को अन्य धर्मों में शैतान के रूप में संबोधित किया गया है।

4. हम सभी देवी देवताओं की इतनी भक्ति करते हैं फिर भी दुखी क्यूँ हैं?

केवल परमपिता परमेश्वर कबीर साहेब जी की पूजा ही हमारे पापों को नष्ट कर सकती है। अन्यथा व्यक्ति पिछले जन्मों में किए गए पाप कर्मों का परिणाम ही भुगतता रहता है। जिस कारण व्यथित रहता है। इसका सीधा सा कारण यह है कि सभी लोग गलत साधना (शस्त्रविरुद्ध भक्ति/ मनमानी भक्ति) कर रहे हैं, जिस कारण वो भगवान से मिलने वाले लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। जिससे उनके सभी प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं। इसलिए वे किसी भी प्रकार की पूजा करने के बावजूद भी दुखी ही रहते हैं।

5. ब्रह्मा विष्णु और शिव किस की भक्ति करते हैं?

इस प्रश्न का उत्तर यह है कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव किसी देवी दुर्गा की उपासना करते हैं। जबकी श्रीमद् देवी भागवत में देवी दुर्गा उन्हे खुद की पुजा करने से मना करते हुए 'ऊं' शब्द का जाप करके काल की ही पूजा करने को संकेत दे रही हैं। इस बारे में सम्पूर्ण सार समझने के लिए  देवी भागवत पुराण पढ़ें।

6. पूर्ण संत की क्या पहचान है? एवं पूर्ण मोक्ष कैसे मिलेगा?

हमारे सभी धार्मिक ग्रंथ पूर्ण संत की अनगिनत पहचान के बारे में बताते हैं। जिसमे से पूर्ण संत के मुख्य लक्षण उसे सर्व वेद-शास्त्रों का ज्ञाता बताया गया है। दूसरे वह मन-कर्म-वचन से यानि सच्ची श्रद्धा से केवल एक परमात्मा समर्थ की भक्ति स्वयं करता है तथा अपने अनुयाईयों से करवाता है ।

7. परमात्मा साकार है या निराकार?

भगवान साकार है , मानव रूप में है। सभी पवित्र ग्रंथों में  इस बात के अनगिनत प्रमाण मौजूद हैं ।  कि ईश्वर साकार है। जो भी संत, महंत ये कहते हैं कि ईश्वर निराकार है, उन्हें ज्ञान नहीं हैं, वो पवित्र शास्त्र की कोई जानकारी नही रखते।

परमात्मा सशरीर साकार है इस बारे में प्रमाण देखें ।

वेद

यजुर्वेद अध्याय 5, मंत्र 1, 6, 8, यजुर्वेद अध्याय 1, मंत्र 15, यजुर्वेद अध्याय 7 मंत्र 39, ऋग्वेद मण्डल 1, सूक्त 31, मंत्र 17, ऋग्वेद मण्डल 9, सूक्त 86, मंत्र 26, 27, ऋग्वेद मण्डल 9, सूक्त 82, मंत्र 1 - 3 (प्रभु राजा के समान दर्शनिये है)परमात्मा साकार है व सहशरीर है - यजुर्वेद

परमात्मा साकार है व सहशरीर है :

कुरान

सूरत फुर्कनी 25 आयत 52 से 59 मे प्रमाण अल्लाह साकार है उसका नाम कबीर है।

बाइबिल

उत्पत्ति ग्रंथ में प्रमाण है कि  ईश्वर ने 6 दिन में सृष्टि रची और परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, नर और नारी करके मनुष्यों की सृष्टी की। इससे सिद्ध होता है कि ईश्वर साकार है।

गुरु ग्रंथ साहेब

गुरु ग्रंथ साहेब पेज नम्बर 721, महला 1, "सिरी" मसला, पेज 25 पर भी प्रमाण मौजूद है ।

8. किसी भी गुरु की शरण में जाने से मोक्ष संभव है या नहीं?

नहीं, सिर्फ किसी गुरु की शरण में जाने से मुक्ति संभव नहीं है। मोक्ष या 'मोक्ष' केवल एक सच्चे / पूर्ण गुरु 'तत्त्वदर्शी संत' की शरण में जाने से संभव है। केवल एक सच्चा गुरु ही सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान और "सच्चा मंत्र" प्रदान कर सकता है जिसके द्वारा मोक्ष संभव है। श्री मदभगवदगीता के अध्याय 4 के, श्लोक 34 में "तत्त्वदर्शी संत" की शरण मे जाने के लिए कहा गया है। इसी तरह, श्रीमदभगवदगीता के ही अध्याय 18 श्लोक 62 से 66 मे गीता ज्ञान दाता अन्य भगवान की शरण में जाने का संदेश देता है।

अधिक जानकारी के लिये भगवद गीता से और पढ़ें।

9. तीर्थ व्रत तर्पण एवं श्राद्ध निकालने से कोई लाभ है या नहीं? (गीता अनुसार)

श्रीमद्भगवद् गीता जी के अनुसार तीर्थ यात्रा पर जाने का कोई लाभ नहीं है क्योंकि यह पूजा एक मनमाना आचरण है व शास्त्रविरुध साधना है।  उपवास रखना भी एक बेकार प्रथा है जिसका कोई लाभ नहीं है। श्रीमद्भगवद् गीता व्रत रखने के सख्त खिलाफ हैं। इसी तरह श्राद्ध करना भी मनमानी पूजा है। श्रीमद्भगवद् गीता भी श्राद्ध करने के विरुद्ध है।

10. श्री कृष्ण जी काल नहीं थे। फिर गीता वाला काल कौन था ?

पवित्र गीता जी को बोलने वाला काल (ब्रह्म-ज्योति निरंजन) है, न कि श्री कृष्ण जी। क्योंकि श्री कृष्ण जी ने महाभारत से पहले कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ तथा बाद में कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ। श्री कृष्ण जी 'सत्वगुणी' हैं जबकि काल दयालु नहीं है। काल की एक हजार भुजाऐं हैं। श्री कृष्ण जी श्री विष्णु जी के अवतार थे, जिनकी चार भुजाऐं हैं। यह काल ही हैं जिन्होंने भगवद्गीता का ज्ञान दिया। कौन है काल इसके बारे में विस्तार से पढ़ें। श्री कृष्ण जी के बारे में भी पढ़ें कि वे सर्वोच्च देव हैं या नहीं।

11. कौन तथा कैसा है, कहाँ रहता है, कैसे मिलता है किसने देखा है पूर्ण परमात्मा?

परमात्मा कबीर साहिब `सर्वोच्च’ हैं। वह मानव सदृश सशरीर रूप मे हैं । वह सतलोक / सचखंड / सतधाम / अनन्त स्थान में रहते हैं । पूर्ण संत से दीक्षा प्राप्त करने के बाद ही उनकी सतभक्ति प्राप्त हो सकती है। वह स्वयं अपनी चाहने वाली पवित्र आत्माओं से मिले और उन्हें अपना सच्चा ज्ञान दिया। सभी प्रमाणो के साथ विस्तृत जानकारी के लिये पढ़ें ज्ञान गंगा।

12. समाधि अभ्यास, राम, हरे क्रिष्ण, हरि ॐ, व पाँच नामों तथा वाहेगुरु आदि आदि नामों के जाप से सुख एवं मुक्ति संभव है या नहीं?

इसका सीधा उत्तर है 'नहीं'। 'राम राम', `राधे राधे’, 'हरे कृष्ण' 'हरि ओम' आदि जैसे मंत्रों का ध्यान या पाठ करने से कोई भी लाभ प्राप्त नहीं कर सकता है क्योंकि वे सभी  मनमाने आचरण हैं और इस तरह बेकार हैं। इनका उल्लेख कहीं  भी भगवद गीता या वेदों में नहीं  मिलता है। इसी तरह गीता किसी भी ध्यान साधना (मेडिटेशन) को उत्तर नहीं मानती है। पूर्ण संत तो सिर्फ संत रामपाल जी महाराज जी हैं जिनके पास मोक्ष देने वाला दो अक्षर का मंत्र है।

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